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लोकरुचि


दस पीढियों से बस्तर दशहरा के लिए फूल जुटा रहा है नाईक परिवार

दस पीढियों से बस्तर दशहरा के लिए फूल जुटा रहा है नाईक परिवार

जगदलपुर, 18 सितंबर (वार्ता) छत्तीसगढ के बस्तर का दशहरा पर्व ही नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक समरसता की झलक भी दिखती है। दशहरे में हर वर्ग के लोगों की भागीदारी सुनिश्चत करने के लिए कई नियम बनाए गए हैं, जिसमें हर जाति व हर प्रकार के काम करने वाले लोगों को काम सौंपा जाता है। ऐसी ही एक भागीदारी पनारापारा में रहने वाले माली समाज के नाईक परिवार की है। दशहरे के दौरान डेरी गड़ाई से लेकर दंतेश्वरी मां की विदाई की रस्म तक नाईक परिवार के फूलों से ही पूजा अर्चना होती है। व्यवस्था ऐसी है कि जब तक नाईक परिवार अपनी बाड़ी में उगाए फूल नहीं लाएगा, तब तक पूजा अर्चना शुरू नहीं होगी। नाईक परिवार यह काम पिछली दस पीढियों से कर रहा है। परिवार की महिलाओं को भी दशहरा में हिस्सेदारी दी गई है। परिवार की महिलाओं का काम है कि रथ में छत्र चढ़ाने के दौरान फूलों की बारिश करना। वर्तमान में यह काम धराबाई नाम की महिला सदस्य कर रही हैं। फूलों की बारिश के एवज में उन्हें 12 किलो चावल, एक पाव तेल, आधा किलो दाल, चुनरी और साड़ी प्राप्त होती है। वहीं फूल उगाने से लेकर इसे रस्मों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी धराबाई के बेटे तिलक के कंधों पर है। तिलक ने बताया कि इससे पहले यह काम उसके पिता मंगलराम करते थे। उनका परिवार दंतेश्वरी मंदिर, कलंकी मंदिर, पाड़देव, कारीडंगाई, मावली मंदिर, रामचंद्र मंदिर, जगन्नाथ मंदिर के अलावा रथ के अंदर के लिए गुथा हुआ फूल देता है। खास बात यह कि नाईक परिवार के फूलों का उपयोग सिर्फ पूजा-पाठ और विधान में किया जाता है। दंतेश्वरी मां के लिए माला विशेष तौर पर बनाई जाती है। इसके अलावा गेंदे, गुलाब और अन्य फूलों से मालाएं बनाई जाती हैं। देवी-देवताओं के छत्र के लिए गजरा भी उनका परिवार गूंथता है। सं. गरिमा वार्ता

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