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भौतिकवादी दुष्प्रभाव से शिक्षा पद्धति को बचाने की जरूरत : लालजी

भौतिकवादी दुष्प्रभाव से शिक्षा पद्धति को बचाने की जरूरत : लालजी

पटना 29 मई (वार्ता) बिहार के राज्यपाल एवं कुलाधिपति लालजी टंडन ने आज कहा कि भौतिकतावाद के युग में विकसित हुई अपसंस्कृति के दुष्प्रभावों से अपनी शिक्षा-पद्धति को बचाते हुए ही नये भारत का निर्माण करना होगा।

श्री टंडन ने यहां तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा संयोजित ‘बिहार के विश्वविद्यालयों में शोध को बढ़ावा देने के लिए संवेदीकरण कार्यशाला’ को संबोधित करते हुये कहा, “उच्च शिक्षा के विकास एवं इसमें सुधार के प्रयासों को तेज करने के लिए हमें भारतीय संस्कृति की मूल जड़ों में सन्निहित विचार सम्पदा के आलोक में ही रास्ते तलाशने होंगे। भौतिकतावादी युग में विकसित हुई अपसंस्कृति के दुष्प्रभावों से अपनी शिक्षा-पद्धति को बचाते हुए ही हमें नये भारत का निर्माण करना होगा।”

कुलाधिपति ने कहा कि शिक्षा में शोधपरकता को विकसित करना नितांत आवश्यक है। शिक्षा को शोधोन्मुखी बनाते हुए इसके प्रति विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को संवेदनशील बनाना बेहद जरूरी है। ज्ञान-विज्ञान के हर क्षेत्र में प्राचीन भारत की जड़ें काफी गहरी जमी हुई हैं। उन्होंने सर्जरी के जनक सुश्रुत, महान गणितज्ञ आर्यभट्ट, विश्वविख्यात भारतीय अर्थशास्त्री कौटिल्य, जगदीश चन्द्र बोस का उल्लेख करते हुए कहा कि इनके शोधों की महत्ता को पूरी दुनिया ने स्वीकारा है। वैदिक ऋचाएं एवं पौराणिक साहित्य भी अणु-परमाणु, पर्यावरण, शिक्षा के कुछ वैज्ञानिक तथ्यों से ओत-प्रोत रहे हैं।

श्री टंडन ने कहा कि पर्यावरण संतुलन की तरह वैचारिक संतुलन और शुद्धि भी जरूरी है। मैकाले, मार्क्स, लेनिन के दर्शन और सिद्धांतों से परिचित होने से पहले भारतीय चिन्तकों और मनीषियों के जीवन-चिन्तन एवं आदर्शों से भी अवगत होना जरूरी है तभी हमारी ज्ञान-संपदा और विचार-यात्रा संतुलित होगी। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास के साथ न्याय नहीं किया है।

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