नयी दिल्ली 17 जनवरी (वार्ता) प्रसिद्ध नृत्यांगना पद्मश्री गीता चंद्रन के शिष्यों ने उन्हें एक अनूठा उपहार भेंट किया है। पिछले 18 महीने से अधिक समय में उन्होंने सामूहिक रूप से अपने गुरु के लिए मिलकर काम किया और उनके सफर पर पुस्तक तैयार की।
इसमें भरतनाट्यम को समृद्ध बनाने के लिए गुरु गीता चंद्रन के जुनून और उनके मिशन की झलक दिखती है। ‘द ए टु जेड प्लस ऑफ गीता चंद्रन एट नाट्य वृक्ष’ पुस्तक के लेख गीता चंद्रन द्वारा नाट्यवृक्ष में अपनाई गई अनूठी शैक्षणिक प्रक्रियाओं तथा नाट्यवृक्ष के छात्रों (पूर्व और वर्तमान), माता-पिता और अन्य पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करते हैं।
परिचय लेख में उनके रचनात्मक साथी और पति राजीव चंद्रन लिखते हैं, “कोई भी जो कभी भी गीता से मिला है वह मेरी इस बात को समझ सकता है, जब मैं गीता को ‘नाट्य रूपेण संस्थिता’ कहता हूं, क्योंकि शास्त्रीय नृत्य उनमें घुला हुआ है, जिसे उन्होंने अपने जीवन के पचपन वर्ष समर्पित किए हैं। वह नृत्य हैं, और नृत्य उनका है। इसमें कोई विभाजन नहीं! भरतनाट्यम के बाहर उनके लिए बहुत कम ही कुछ है। यह नृत्य उनकी शारीरिक शक्ति, भावनात्मक मजबूती, उनकी कल्पना और उनके प्रभाव को दर्शाता है।”
गीता की वरिष्ठ छात्रा डॉ. स्नेहा चक्रधर लिखती हैं, “हाल के वर्षों में उनका ध्यान नृत्य के लिए एक शिक्षाशास्त्र विकसित करने पर रहा है ताकि शिक्षकों को अपने छात्रों से अधिक सार्थक तरीके से जुड़ने में मदद मिल सके। मैंने व्यक्तिगत रूप से उनसे कला शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ सीखा है। विरले ही हम ऐसे कलाकारों के संपर्क में आते हैं, जिनमें इतनी विविधता भी है और जो इतने केंद्रित भी हैं। एक ओर वह सुधारों को अपनाती हैं और धारा के साथ चलती हैं, तो दूसरी ओर वह उतनी ही सतर्क और विद्वान भी हैं। वह छवि में नहीं बंधी हैं। उनका काम ही उनके बारे में बोलता है और वह किसी खेमे में नहीं हैं। कुछ नया गढ़ने की उनकी प्यास ने नृत्य को नई दिशा दी है। गीता चंद्रन का भरतनाट्यम वास्तव में सीमाहीन और सबसे परे है।”
पुस्तक में लेखों को तस्वीरों से समृद्ध किया गया है। चित्रों, रेखाचित्रों और कविताओं के रूप में भी छात्रों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। इस पुस्तक को नियोगी बुक्स नेडिजाइन और मुद्रित किया है।
शेखर
वार्ता