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रेडियो जॉकी बनकर संवारें करिअर

रेडियो जॉकी बनकर संवारें करिअर

(अशोक सिंह)

नयी दिल्ली, 05 अप्रैल(वार्ता) टीवी चैनलों की भरमार होने पर रेडियो के महत्त्वहीन हो जाने की बात निरंतर कही जा रही थी लेकिन इसके उलट रेडियो का जादू आज भी बरकरार है। दुनिया भर में रेडियो के श्रोताओं की संख्या करोड़ों में है और कहना गलत नहीं होगा कि इसमें बढ़ोतरी ही हो रही है। इसके पीछे कारण है रेडियो सिग्नल्स की व्यावहारिक तौर पर हर जगह उपलब्धता और अन्य कार्यकलापों को करते हुए रेडियो सुनने की श्रोताओं को सुविधा।

हाल के वर्षों में रेडियो की दुनिया में काफी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं, जैसे एफ एम रेडियो चैनल्स की नई श्रृंखला का अस्तित्व में आना और निजी कंपनियों द्वारा इनका मनोरंजन से भरपूर कार्यक्रमों के प्रसारण करना, कम्युनिटी रेडियो इसी क्रम में हाल की नई उपलब्धि है। अब तो हाल यह है कि प्रायः हर बड़े शहर के अपने एफ एम रेडियो चैनल्स हैं। इनके श्रोतागण कार या बस में सफ़र करते हुए, ऑफिस का काम करते हुए अथवा राह चलते हुए भी इसका आनंद लेते देखे जा सकते हैं।

कार्य दायित्व :- एफ एम रेडियो चैनल्स ने इस क्रम में रेडियो जॉकी या आर जे के एक नए पेशे को पनपने का मौका दिया है। ये आर जे वस्तुतः रेडियो कार्यक्रमों के प्रस्तुतकर्ता होते हैं जिनका काम श्रोताओं को अपनी मजेदार, दिलचस्प और लच्छेदार बातों में बांधे रखना होता है। जितने ज्यादा श्रोता उतनी अधिक रेडियो चैनल्स की लोकप्रियता और उसी क्रम में विज्ञापनों से आय। मोटा-मोटी यही इनका कमाई करने का गणित होता है। इसलिए आर जे या कार्यक्रम के सूत्रधार के महत्त्व को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।

आर जे बनने के लिए गुण :- महज़ बातूनी होना भर ही इस पेशे में सफलता दिलाने के लिए काफी नहीं है। इसके साथ अद्यतन जानकारियों का ज्ञान होना भी ज़रूरी है ताकि श्रोताओं को ताज़ी और सामयिक घटनाओं के बारे में मनोरंजन के साथ-साथ जानकारी भी दी जा सकें। हिंदी या अंग्रेजी जिस भाषा पर अधिकार हो उसी को इस प्रोफेशन में आगे बढ़ने के लिए अपनाना चाहिए। रेडियो,श्रव्य माध्यम है इसलिए भाषा के स्पष्ट उच्चारण पर अच्छी पकड़ होनी भी आवश्यक शर्त है। यह नहीं भूलें कि बोलने के क्रम में सूचनाओं के अनुसार उच्चारण का उतार-चढ़ाव का ध्यान रखना कार्यक्रम प्रस्तुतीकरण को न केवल रोचक बल्कि आकर्षक भी बना देता है। कार्यक्रम में श्रोताओं के पत्रों के उत्तर देना, मौसम की जानकारी देना, साक्षात्कार करना आदि का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसलिए रेडियो जॉकी के लिए स्वयं को हमेशा अपडेट रखना इस प्रोफेशन में बने रहने के लिए निहायत ज़रूरी होता है।

अधिकांश ऐसे कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण किया जाता है इसलिए रीटेक की कतई गुंजायश नहीं होती है। आर जे को ऐसे में कार्यक्रमों के दौरान स्थितियों को अपनी दिमागी सतर्कता और हाज़िरजवाबी की कला से संभालना पड़ता है। अत्यंत विनम्र एवं संयम के साथ समूचे शो को अपने गंतव्य तक सफलतापूर्वक पहुँचाने का दायित्व इन्हीं आर जे पर होता है। इसलिए विपरीत स्थितियों में आत्मविश्वास को बनाये रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है।

ट्रेनिंग :- कम से कम ग्रेजुएट युवाओं को ही इस क्षेत्र में भविष्य बनाने के लिए कदम रखना चाहिए। निजी क्षेत्र में कई ट्रेनिंग संस्थानों द्वारा इससे सम्बंधित कोर्स संचालित किये जाते हैं। बेहतर होगा कि किसी रेडियो स्टेशन में आवेदन करने और स्वर परीक्षा (ऑडिशन) देने से पूर्व थोड़ी ट्रेनिंग अवश्य हासिल करें। अनुभवी ट्रेनर आपके अन्दर की छिपी प्रतिभा को न सिर्फ बाहर निकालने में मददगार हो सकते हैं बल्कि उसे तराशने और निखारने में भी अहम भूमिका अदा कर सकते हैं।

अलग स्टाइल :- इस प्रोफेशन में स्थापित अन्य आर जे के साथ प्रतिस्पर्धा में न सिर्फ अपनी अलग पहचान बनाने की ज़रूरत पड़ती है बल्कि एक ख़ास स्टाइल भी विकसित करना आवश्यक हो जाता है ताकि श्रोताओं को अधिक से अधिक संख्या में अपने कार्यक्रम के साथ जोड़ा जा सके। वर्तमान दौर के आर जे द्वारा प्रस्तुत विभिन्न कार्यक्रमों को सुनकर अपने अलग स्टाइल को विकसित करने की अवधारणा को बखूबी समझा जा सकता है। एफ एम रेडियो में हिंदी और अंग्रेजी भाषा का कई बार साथ-साथ इस्तेमाल करना पड़ता है, खासतौर पर युवाओं पर आधारित कार्यक्रमों में 'हिंगलिश' का प्रयोग बेहद ज़रूरी हो जाता है। इसलिए दोनों भाषाओं का जानकार होना ज़रूरी माना जा सकता है।

रोज़गार :- देश के विभिन्न शहरों में स्थित आकाशवाणी केन्द्रों के अतिरिक्त एफ एम रेडियो चैनल्स में समय-समय पर ऑडिशन के माध्यम से ‘आर जे’ का चयन किया जाता है। इस जॉब के साथ साथ विज्ञापनों और फिल्म डबिंग जैसे कार्यों में भी आवाज़ देकर मोटी कमाई करने के मौके हो सकते हैं।

गुरुमंत्र :- स्वयं भी अपनी आवाज़ रिकार्ड कर सुननी चाहिए और कमियों को पहचानकर उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। सही उच्चारण के लिए आकाशवाणी अथवा टेलीविज़न समाचारों को नियमित तौर पर देखना और सुनना चाहिए। समाचारवाचकों के उच्चारण और उनकी आवाज़ के उतार-चढ़ाव के अनुसार सुधार करने से काफी लाभ हो सकता है।

जय, उप्रेती

वार्ता

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