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मिथिला के सांस्कृतिक धरोहर को संजोने की जरूरत : निशीथ

दरभंगा, 07 मार्च (वार्ता) बिहार के प्रतिष्ठित ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव कर्नल निशीथ राय ने मिथिला को विद्वानों की भूमि बताया और कहा कि मिथिला के सांस्कृतिक धरोहर को संजोने की जरूरत है।
श्री राय ने स्वयंसेवी संस्था डॉ. प्रभात फाउण्डेशन एवं स्नातकोत्तर समाजशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘‘सांस्कृतिक धरोहर और मिथिला’’ विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि विद्वता परंपरा के लिए मिथिला आरंभ से ही विख्यात रही है और यह विद्वानों की भूमि कहलाती है। यहां एक से बढ़कर एक महाज्ञानी हुए है और विद्वता रूपी धरोहर को मिथिला आज भी संजोए हुए है। इस धरोहर को आगे बढ़ाने में विश्वविद्यालय के विद्यार्थी के साथ उनका विश्वविद्यालय अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
विधायक संजय सरावगी ने कहा कि मिथिला की संस्कृति विश्व-विख्यात है। याज्ञवल्क्य, मंडन मिश्र और मैथिल कोकिल विद्यापति हमारी संस्कृति के प्रतीक रहे है। शास्त्रार्थ की परंपरा हमारी विरासत रही है। इसे फिर से संस्कृत विश्वविद्यालय में शुरू किया गया है। यहां के राज्य पुस्तकालय में हजारों वर्ष पुरानी पांडुलिपियां रखी है। जिससे हमारी सभ्यता-संस्कृति का बोध होता है और विदेशों से विद्वान आकर इस पर शोध कर रहे है। प्रारंभ में सांस्कृतिक धरोहरों पर ध्यान नहीं दिया गया, जिसके कारण यहां की विरासत का क्षरण हुआ पर अब इसे संजोया और संरक्षित किया जा रहा है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ वैद्यनाथ चौधरी ने कहा कि जनकनंदनी सीता और हिमालय पुत्री पार्वती हमारी धरोहर है और आज भी हमारे घरों में ये कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। हमारी धरोहरों को संरक्षण दिया जा रहा है। संगोष्ठी को वरीय समाजशास्त्री डॉ. गोपीरमण प्रसाद सिंह, डॉ विनोद कुमार चौधरी, डॉ विद्यानाथ मिश्र ने भी संबोधित किया।
सं.सतीश
वार्ता
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