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लेखक केदारनाथ चौधरी ने मैथिली साहित्य को नई दिशा दी: डॉ.मंजर

दरभंगा, 27 मई (वार्ता) जाने माने समालोचक डॉ. मंजर सुलैमान ने लेखक केदारनाथ चौधरी के उपन्यासों को मैथिली साहित्य के लिए क्षेत्र में नई दिशा देने वाला बताया और कहा कि उनकी कृति का आधार लोकभाषा होने से उनके उपन्यास के पात्र आसानी से पाठकों के जेहन में बस जाते हैं।
डॉ. सुलैमान ने आज यहां ‘मैथिली साहित्य में केदारनाथ चौधरी के उपन्यास’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि दरभंगा जिले के नेहरा गांव निवासी केदारनाथ चौधरी बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे हैं। प्रथम मैथिली फिल्म ‘ममता गाबय गीत’ के निर्माताओं में शामिल रहे केदारबाबू आजीवन प्रबंधन के क्षेत्र से जुड़े रहे और 70 वर्ष की अवस्था में लेखन प्रारंभ किया। चमेली रानी, माहुर, करार, हिना, आवारा नहितन और आयना- उपन्यास कर लेखन कर मैथिली साहित्य को नई दिशा दी है। शायद यही कारण है कि प्रबोध सम्मान से सम्मानित इनकी कृति का पुनः प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) से हो रहा है। यह मैथिली साहित्य के लिए गौरव का विषय है।
समालोचक ने कहा कि मैथिली उपन्यास जगत के श्लाका पुरूष साबित हो चुके श्री चौधरी ने अपनी कृति का आधार लोकभाषा को बनाया जिसके कारण इनके उपन्यास के पात्र जेहन में बस जाते हैं। इन्होंने अपनी रचनाएं नई पीढ़ी के नजरिए से लिखी है। जैसे हरिमोहन झा कन्यादान एवंं दुरागमन के लिए याद किए जाते हैं, उसी तरह से केदारबाबू अपने उपन्यासों के लिए याद किए जाएंगें।
वहीं, विश्वविद्यालय के मैथिली विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. रमण झा ने कहा कि लेखक की कृति का मूल्यांकन पाठक ही करते हैं और केदारबाबू की रचनाओं की लोकप्रियता इसे बयां करती है। शायद इसलिए उन्हें प्रबोध साहित्य सम्मान भी मिला। उपन्यास लेखन साहित्य की सबसे कठिनतम विधा है और इस क्षेत्र में केदारबाबू की कृतियों की उपलब्धता इनके लेखकीय व्यक्तित्व को उजागर करती है। संगोष्ठी को राजनीति शास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. रविन्द्र चौधरी, प्रो. डॉ उषा चौधरी और अमीता चौधरी समेत अन्य लोगों ने भी संबोधित किया।
सं.सतीश
वार्ता
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