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विक्रमशिला और नालंदा महाविहार को कभी भुलाया नहीं जा सकता : सोनाम

भागलपुर 01 जनवरी (वार्ता) बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा के शिष्य बौद्ध भिक्षुक गेसे नवांग सोनाम ने कहा कि प्राचीन भारत में शिक्षा के प्रमुख केंद्र रहे बिहार के विक्रमशिला एवं नालंदा महाविहार का खुदाई स्थल काफी ज्ञानवर्द्धक है और इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
श्री सोनाम ने भागलपुर जिले में कहलगांव के निकट अवस्थित विक्रमशिला महाविहार के स्थल का भ्रमण करने के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि विक्रमशिला एवं नालंदा महाविहार आधुनिक भारत के ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तरह थे। खासकर, विक्रमशिला के शिक्षक एवं विद्वान अतिश दीपांकर की धरती है और यह बौद्ध धर्मावलंबियों के साधना के लिए बेहतर है। इसलिए वह इसे देखने आए हैं।
बौद्ध भिक्षु ने कहा कि अतिश दीपांकर की शिक्षा अर्थात प्रज्ञा मौजूदा समाज के लिए बहुमूल्य संपदा है और इसे संजोकर रखना ही सही मायने में बुद्धिज्म है, जो नाकारात्मकता से बचाव के लिए बहुत सुंदर उपाय है। बौद्ध धर्म की जानकारी के लिए बौद्ध धर्म को अपनाना जरूरी नहीं है।
श्री सोनाम ने कहा कि वर्तमान समय में विक्रमशिला महाविहार में बौद्ध शिक्षा के लिए शिक्षक एवं पठन-पाठन की सामग्री मुहैय्या करा सकते हैं लेकिन कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि इस महाविहार के शिक्षक एवं महान विद्वान अतिश दीपांकर की कर्मभूमि रही विक्रमशिला से बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा अच्छी तरह से अवगत हैं और वह यहां आने को इच्छुक भी हैं। जल्द ही उनके यहां आने का कार्यक्रम बनेगा।
इससे पहले उन्होंने विक्रमशिला महाविहार के भग्नावशेष का अवलोकन किया और संग्रहालय में रखे उत्खनन से मिले बहुमूल्य कलाकृतियों एवं ऐतिहासिक महत्व की सामग्रियों को भी देखा। इस दौरान वे विदा्न अतिश दीपांकर के जन्म स्थल एवं उनके परिजनों के बारे मे विस्तार से जानकारियां लीं। इस मौके पर कैलिफोर्निया के उनके सहयोगी डा. शशि वर्मा भी उपस्थित थे।
सं सूरज
वार्ता
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