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कोरोना यमदूत को रोकने के लिए पहरेदारी कर रहे ‘करना’ के लोग

दुमका, 25 वार्ता (वार्ता) कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर जारी देशव्यापी लॉकडाउन के नियमों का अनुपालन कराने के लिए जहां शहरी क्षेत्र में पुलिस को सख्ती दिखानी पड़ती है वहीं झारखंड में दुमका जिले का एक गांव है करना, जहां के लोग कोराेना महामारी को यमदूत मान कर अपने-अपने गांव की रक्षा के लिए दिन-रात पहरेदारी में जुटे हैं।
आदिवासी बहुल करना टोला गांव के लोग रोजी रोजगार के लिए दूर प्रदेशों में जाने के बदले अपनी जमीन पर खेती कर आत्मनिर्भर और खुश हैं। जिले के अधिकांश गांवों के ग्रामीण इतने जागरूक है कि गांव के मुख्य प्रवेश पथ पर अवरोधक लगाकर बाहर से किसी बाहरी या बाहर से आने वाले अपने ग्राम निवासी के गांव में प्रवेश करने पर सख्त पाबंदी लगा रखी है। कम पढ़ा-लिखा रहने के बावजूद ग्रामीण रतजगा कर दुमका के गांवों को कोराना के संक्रमण से बचाने के लिए पहरेदारी कर रहे हैं और लॉकडाउन के नियमों का स्वत: और सख्ती से पालन भी कर रहे हैं।
दुमका जिला मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर डाकरी गांव के करना टोला के मुख्य प्रवेश पथ पर अवरोधक लगाकर पेड़ की छांव में बैठकर पहरेदारी करते मिले युवकों का कहना है कि गांव में आने वाले हर शख्स को यह बताना पड़ता है कि आप कहां से आए हैं और किससे मिलना है। पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही उन्हें गुजरने दिया जाता हैं। उन्होंने कहा कि संक्रमण के बचाव के लिए एहतियात जरुरी है।
करना टोला गांव निवासी वार्ड सदस्य सोम मुर्मू कहते हैं कि उनके गांव में कोई भी प्रवासी मजदूर बाहर से नहीं आया है। गांव के लोग कोरोना को लेकर काफी जागरुक हैं। वहीं, करना टोला गांव से लगे दूसरे गांव के रहने वाले किसान आलेश हांसदा इस बात से प्रसन्न है कि गांव के लोग रोजी-रोजगार के लिए दूर प्रदेशों में जाने के बदले लगभग तीन दशक पूर्व सरकारी स्तर पर ‘जल है जहान है योजना’ के मिले कुएं से पटवन कर खेती एवं बेहतर सब्जी उत्पादन कर अपनी जीविका चलाकर आत्मनिर्भर हैं। ग्रामीण खरीफ, रबी एवं सब्जी के उत्पादन के साथ पशुपालन में गहरी रुचि रखते हैं। कई ग्रामीण मछली पालन के व्यवसाय से जुड़कर अच्छी आय कर लेते हैं इसलिए उन्हें रोजगार के लिये बाहर जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है।
आलेश हांसदा का छोटा भाई दो दशक पूर्व रोजगार की तलाश में दूसरे राज्य में चला गया और आज तक घर लौट कर नहीं आया। आलेश हांसदा के साथ उनकी पूरा परिवार भाई के घर छोड़ने को लेकर अबतक नहीं उबर पाया है। उन्होंने कहा कि परदेश के जिंदगी जीने से लाख गुना अच्छी अपने घर की सूखी रोटी है।
सं सतीश सूरज
वार्ता
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