राज्य » बिहार / झारखण्डPosted at: Sep 6 2020 6:03PM बिहार के उर्दू लेखकों ने राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक चेतना को उजागर किया : प्रो. आफताबदरभंगा, 06 सितंबर (वार्ता) बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. आफताब अहमद आफाकी ने बिहार के अजीमाबाद को उर्दू साहित्य में विशेष बताया और कहा कि अजीमाबाद के उर्दू साहित्यकारों और लेखकों ने भारत के अन्य साहित्यिक केंद्रों को नई चेतना से अवगत कराया। प्रो. आफाकी ने स्थानीय सी एम कॉलेज दरभंगा के उर्दू विभाग द्वारा एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार शीर्षक “अजीमाबाद की अदबीखिदमत” के उद्घाटन सत्र में व्याख्यान देते हुए कहा कि जब दिल्ली और लखनऊ में साहित्य सृजन नहीं हो रहा था उस वक्त पटना जिसे अजीमाबाद कहा जाता है में 11वीं सदी में उर्दू साहित्य लिखा जा रहा था इसलिए भारतवर्ष में उर्दू साहित्य का इतिहास अजीमाबाद की खिदमत को नजरअंदाज नहीं कर सकता। उन्होंने कहा यदि उर्दू का इतिहास पूर्ण होगा तो उसमें बिहार के उर्दू लेखकों की साहित्यिक खिदमत को दर्ज करना अनिवार्य होगा। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. इरतेज़ा करीम ने कहा कि सीएम कॉलेज दरभंगा ने इस वेबीनार के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर एक नई बहस को जन्म दिया है। यह बहस साहित्य जगत में बिहार के साहित्यकारों के साथ इंसाफ का तकाजा है और अजीमाबाद की साहित्यिक रचनाओं को नई पहचान देना है। वहीं, कालेज के प्रधानाचार्य और उर्दू के स्थापित साहित्यकार डॉ. मुश्ताक अहमद ने कहा कि अजीमाबाद में साहित्य लेखन का काम 10वीं सदी के अंत से शुरु हो गया था और बदलते समय के साथ यहां के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में मातृभूमि की खुशबू को गजलों और नज्में में पेश करने की कोशिश की। पूरे भारत में पहला शायरी का दीवान अजीमाबाद में छपा था। उन्होंने कहा कि शाद अजीमाबादी को हम फरामोश नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने नई शायरी को जन्म दिया। वेबीनार में प्रो. मोहम्मद अली जौहर (अलीगढ़), डॉ. फारुख अर्गली (दिल्ली), खुर्शीद हयात (छत्तीसगढ़), सैयद अहमद कादरी (मुंबई), डॉ. शबाना जावेद (कोलकाता), डॉ. सगीर अहमद (गया), डॉ. जफर आजमी (पटना) के अलावा दरभंगा के प्रो. आफताब अशरफ, डॉ. अब्दुल हाई डॉ. अरशद हुसैन और डॉ अब्दुल राफे आदि ने इस विषय पर अपने आलेख पढ़े। बेबीनार में 100 से अधिक उर्दू के साहित्यकार इससे जुड़े हुए थे।सं. सतीश सूरजवार्ता