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भारत की तरह यूरोप में भी मातृभाषाओं की स्थिति काफी दयनीय : प्रो. गौतम

रांची, 11 अप्रैल (वार्ता) यूरोपियन यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट एंड ईस्ट कर्न इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियाई स्टडीज, लेडन नीदरलैंड के प्रोफेसर डॉ. मोहन कान्त गौतम ने यूरोपियन देशों और भारत के भाषाओं पर चर्चा करते हुये कहा कि भारत की तरह ही यूरोप में भी मातृभाषाओं की स्थिति काफी दयनीय है
प्रो. गौतम ने रविवार को जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची विश्वविद्यालय द्वारा "बदलते शैक्षिक परिदृश्य में मातृभाषाओं की भूमिका : संभावनाएं और चुनौतियां (झारखंड के संदर्भ में)" आयोजित एक दिवसीय ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कहा कि मातृभाषा की अहमियत को जाने बगैर हम अपनी विकास की कल्पना नहीं कर सकते। छात्रों को मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए संबंधित भाषा के शिक्षकों को बाहर जाकर दूसरी भाषाओं से भी सीखना चाहिये। वेबिनार का विषय था ।
प्रोफेसर ने भाषाओं के मानकीकरण एवं व्याकरणिक पहलुओं पर चर्चा करते हुये कहा कि भाषाओं के विकास के लिये नये सिद्धांत और कांसेप्ट बनाया जाए। उन्होंने झारखंड के अलग-अलग भाषाओं के शब्दों को लेकर एक भाषा का निर्माण करने की बात कही। उन्होंने कहा कि वर्षों से चले आ रहे पुराने सिस्टम में बदलाव होगा। डिग्लोशिया और बाइलिंगुलिया को समझना होगा।
विनय सतीश
जारी वार्ता
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