राज्य » बिहार / झारखण्डPosted at: Sep 26 2021 11:11PM तकनीकी एवं व्यवहारिक तौर पर केंद्र के लिए जातीय जनगणना कराना सम्भव नहीं- सुशीलपटना 26 सितंबर(वार्ता) बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद सुशील कुमार मोदी ने रविवार को कहा कि केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा देकर स्पष्ट कर दिया है कि तकनीकी एवं व्यवहारिक तौर पर उसके लिए जातीय जनगणना कराना सम्भव नहीं है। श्री मोदी ने यहां बयान जारी कर कहा कि तकनीकी और व्यवहारिक तौर पर केंद्र सरकार के लिए जातीय जनगणना कराना सम्भव नहीं है। इस बाबत केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है लेकिन राज्य अगर चाहे तो वे जातीय जनगणना कराने के लिए स्वतंत्र है। भाजपा सांसद ने कहा कि वर्ष 1931 की जातीय जनगणना में 4147 जातियां पाई गई थीं, केंद्र और राज्यों के पिछड़े वर्गों की सूची मिला कर मात्र 5629 जातियां है जबकि 2011 में कराई गई सामाजिक-आर्थिक गणना में एकबारगी जातियों की संख्या बढ़ कर 46 लाख के करीब हो गई। लोगों ने इसमें अपना गोत्र, जाति, उपजाति, उपनाम आदि दर्ज करा दिया। इसलिए जातियों का शुद्ध आंकड़ा प्राप्त करना सम्भव नहीं हो पाया। श्री मोदी ने कहा कि यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है, लोगों को कोर्ट के फ़ैसले का इंतजार करना चाहिए या जो राज्य चाहे तो वहां अपना पक्ष रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना का मामला केवल एक कॉलम जोड़ने का नहीं है। इस बार इलेक्ट्रॉनिक टैब के जरिए गणना होनी है। गणना की प्रक्रिया अमूमन 4 साल पहले शुरू हो जाती है जिनमें पूछे जाने वाले प्रश्न,उनका 16 भाषाओं में अनुवाद, टाइम टेबल और मैन्युअल आदि का काम पूरा किया जा चुका है। अंतिम समय में इसमें किसी प्रकार का बदलाव सम्भव नहीं है। भाजपा सांसद ने कहा कि राज्यों की अलग - अलग स्थितियां हैं, मसलन 5 राज्यों में अन्य पिछड़ी जातियां (ओबीसी) है ही नहीं, 4 राज्यों की कोई राज्यसूची नहीं है, कुछ राज्यों में अनाथ और गरीब बच्चों को ओबीसी की सूची में शामिल किया गया है। कर्नाटक सरकार ने तो वर्ष 2015 में जातीय जनगणना कराई थी, लेकिन आज तक उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जा सके हैं।शिवा वार्ता