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बिजनेस


ग्रामीण महिलाओं के सपने के दायरे को बढाते स्वयं सहायता समूह

नयी दिल्ली 15 जुलाई (वार्ता) मिट्टी के घड़े के पेंदे को लकड़ी और हाथों से थपथपाकर गोल आकार देती तमिलनाडु के एक छोटे से गांव कुआनियूर की 52 साल की शांति ने दो जून की रोटी से अधिक के सपने नहीं देखे थे। अपने पूरे परिवार के साथ मिलकर बनाये मिट्टी के बर्तनों को बेचकर सालाना वह बमुश्किल 50,000 रुपये कमा पाती थी लेकिन आज उसकी आमदनी ढाई गुणा बढ़ गयी है और देश-विदेश में उसके बनाये उत्पादों की मांग है।
स्वभाव से शर्मिली शांति बताती हैं कि मिट्टी के बर्तन बनाना उनका पुश्तैनी काम है। जैसे-तैसे जीवन निर्वाह करते हुये उन्होंने कभी अधिक की ख्वाहिश नहीं की। सोचा ही नहीं कभी कि वह भी सपने देख सकती हैं और उन्हें साकार करने की हिम्मत भी रखती हैं। शांति का कहना है कि दो साल पहले तक उनका कामकाज बिल्कुल सामान्य सा था। कभी-कभी मांग आती थी और कमाई भी वैसी ही थी। लेकिन, दो साल पहले श्रीनिवासन सर्विसेज ट्रस्ट (एसएसटी) की सामुदायिक विकास अधिकारी रामालक्ष्मी से हुई मुलाकात ने जिंदगी को नये मायने दिये और बेहतरी के सपनों को रोपा।
ट्रस्ट के सहयोग से शांति ने स्वयं सहायता समूह ‘नर्मदा’ का गठन किया। इस समूह में 12 सदस्य हैं। एसएसटी ने बैंक से साढे़ चार लाख रुपये का रिण दिलाने और वेंडर्स से जुड़ने में मदद तो की ही और साथ ही कारोबार की बारीकियों को सिखाने के लिये प्रशिक्षण भी दिया। बैंक की दहलीज तक पर भी कभी कदम नहीं रखने वाली शांति अब बैंक में सारे लेनदेन खुद ही करती हैं। एसएसटी अब पॉटरी की गुणवत्ता जांच के अलावा बाजार की पहचान में मदद कर रहा है और उसने मात्र 200 रुपये में समूह को लेखापरीक्षक भी मुहैया कराया है। नर्मदा के सदस्यों की बनायी पॉटरी अब तमिलनाडु के छोटे से गांव से निकलकर केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बाजारों और अमेरिका में अपनी पहचान बना रही है। हाल में ही शांति के करीबी रिश्तेदार के सहयोग से नर्मदा समूह को अमेरिका से 15,000 पॉटरी निर्यात का आर्डर मिला, जिसे उन्होंने पूरा किया है।
ऐसी ही कहानी तिरुनेलवेली जिले में अरसनरकुलम की गांधी नगर कॉलोनी में चलने वाले ‘गांधी स्वयं सहायता समूह ’की भी है। इस समूह की लीडर धनलक्ष्मी पहले अपने पति के साथ मिलकर हर महीने 200 के करीब बिजली की लड़ियां बनाती थीं। तीन साल पहले एसएसटी के सहयोग से समूह बनाया, जिसमें 15 सदस्य हैं। एसएसटी ने बैंक से आठ लाख रुपये का रिण दिलाने में मदद की। अब पति का काम डिजाइन करके कटआउट बनाना है। समूह में शामिल महिलायें हर महीने एलईडी लाइट की करीब 3,000 लड़ियां बनाकर उसे डिजाइन के अनुसार पिरोती हैं। नेताओं और भगवान के कटआउट सबसे अधिक चलते हैं। धार्मिक महोत्सवों,चुनाव और रथ यात्रा के दौरान मांग काफी बढ़ जाती है और कटआउट किराये पर भी खूब जाते हैं। स्थानीय स्तर पर एक दिन का किराया 1,500 रुपये मिलता है जबकि बाहर जाने का किराया 6,000 रुपये प्रतिदिन है। रिण से ही एक वाहन भी खरीद लिया जिससे कटआउट को ढोने में आसानी हो गयी।
धनलक्ष्मी का कहना है कि पहले गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह खींच रही थी और कभी किसी और को रोजगार दूं,ऐसी कल्पना ही नहीं की। लेकिन, आज खुशी है कि कई घरों में गांधी समूह की सफलता के कारण चूल्हा जल रहा है। समूह की आमदनी करीब 10,00,000 रुपये प्रति वर्ष है। उन्होंने बताया कि अब तक 5,000 महिलायें उनसे एलईडी लाइट की लड़ी बनाने का प्रशिक्षण ले चुकी हैं।
इसी जिले के इरुवाड़ी गांव में चलने वाला ‘बिसमी’ स्वयं सहायता समूह भी धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहा है। मुस्लिम समुदाय की महिलाओं का यह समूह सिलाई करने के साथ-साथ सजावट के सामान और कागज के कप आदि बनाता है। समूह की 15 सदस्य एक कमरे में बैठीं, कभी किसी स्कूल की ड्रेस तैयार रही होती हैं, तो कभी टोपी तो कभी साडियों में लेस लगाने का काम करती हैं। जब इनकी मांग कमजोर होती है, तो अचार और घरेलू उपचार के लिये दवायें तैयार करती हैं।
दोपहिया वाहन निर्माता कंपनी टीवीएस के तहत काम करने वाले एसएसटी के आंकड़ें बताते हैं कि बीते वित्त वर्ष देश भर के 13,500 स्वयं सहायता समूहों ने 450 करोड़ रुपये से अधिक आमदनी की। इन समूहों से कुल 1,84,000 महिलायें जुड़ी हैं। एसएसटी का उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाकर ग्रामीण इलाकों की आमदनी बढाने में मदद करना है।
अर्चना
वार्ता
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