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मनोरंजन-शांताराम अर्थपूर्ण फिल्में दो अंतिम मुंबई

वर्ष 1946 में प्रदर्शित फिल्म ‘डॉ. कोटनीस की अमर कहानी’ वी.शातारांम निर्देशित महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है जिसमें मुख्य किरदार की भूमिका उन्होंने स्वयं निभाई थी। फिल्म की कहानी डा.द्वारकानाथ कोटनीस की जिंदगी से जुड़ी एक सत्य घटना पर आधारित होती है जिसमें द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद डा.कोटनीस कैदियों के इलाज के लिए चीन जाते हैं जहां जापानी सरकार द्वारा कैद कर लिए जाते हैं। हालांकि बाद में वहीं उनकी मौत हो जाती है।
वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ वी.शांताराम द्वारा निर्देशित पहली रंगीन फिल्म थी। नृत्य पर आधारित इस फिल्म में गोपी कृष्ण और संध्या की मुख्य भूमिका थी। फिल्म में अपने बेहतरीन निर्देशन के लिए उनको पहली बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘दो आंखे बारह हाथ’ वी.शांताराम की सर्वाधिक सुपरहिट फिल्म साबित हुई। दो आंखे बारह हाथ उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शुमार की जाती है। साथ ही इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। वहीं, फिल्म बर्लिन फिल्म फेस्टिबल में सिल्वर बीयर अवार्ड और सैमुयल गोल्डेन अवार्ड में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म के पुरस्कार से सम्मानित भी की गई।
वर्ष1959 में प्रदर्शित फिल्म ‘नवरंग’ वी.शांताराम के करियर की उल्लेखनीय फिल्मों में शामिल है। फिल्म में होली का गीत ‘अरे जा रे हट नटखट’ फिल्माया गया। सी रामचंद्र के संगीत निर्देशन और आशा भोंसले द्वारा गाए गए भरत व्यास रचित इस सुंदर गीत को सिने प्रेमी आज भी नहीं भूल पाए हैं। गीत से जुड़ा रोचक तथ्य है कि इसमें अभिनेत्री संध्या को गाने के दौरान लड़के और लड़की के भेष में एक साथ दिखाया गया था। वर्ष 1964 में अपनी पुत्री राजश्री को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिए उन्होंने ‘गीत गाया पत्थरो नें’ का निर्माण किया। इसी फिल्म से अभिनेता जीतेन्द्र ने भी अपने करियर की शुरुआत की थी।अपनी पहली ही फिल्म में जीतेन्द्र का जलावा दर्शकों के सिर चढ़कर बोला और फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई। सत्तर के दशक में उन्होंने फिल्मों में काम करना काफी हद तक कम कर दिया। वर्ष 1986 में प्रदर्शित फिल्म ‘झांझर’ उनके द्वारा निर्देशित अंतिम फिल्म साबित हुई। फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से नकार दी गई जिससे शांताराम को गहरा सदमा पहुंचा और उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया।
वी.शांताराम को अपने कैरियर में मान-सम्मान भी बहुत मिला। वर्ष 1985 फिल्म निर्माण में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए वह फिल्म इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किए गए। इसके अलावा वर्ष 1992 में उन्हें पद्मविभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने छह दशक लंबे सिने करियर में लगभग 50 फिल्मों को निर्देशित किया। उनके करियर की उल्लेखनीय फिल्मों में कुछ हैं चंद्रसेना, माया मछिन्द्रा, अमृत मंथन, धर्मात्मा, दुनिया ना माने, पड़ोसी, अपना देश, दहेज, परछाइयां, तीन बत्ती चार रास्ता, सेहरा, बूंद जो बन गए मोती, पिंजरा आदि अपनी फिल्मों के जरिए दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार वी.शांताराम 30 अक्टूबर 1990 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
प्रेम
वार्ता
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