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मनोरंजन-मजरूह राजकपूर तीन अंतिम मुबई

जेल मे रहने के कारण मजरूह सुल्तानपुरी के परिवार की माली हालत काफी खराब हो गयी। राजकपूर ने उनकी सहायता करनी चाही लेकिन मजरूह सुल्तानपुरी ने उनकी सहायता लेने से मना कर दिया। इसके बाद राजकपूर ने उनसे एक गीत लिखने की पेशकश की। मजरूह सुल्तान पुरी ने ..एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल ..गीत की रचना की जिसके एवज मे राजकपूर ने उन्हें एक हजार रूपये दिये। वर्ष 1975 में राजकपूर ने अपनी फिल्म धरम-करम के लिये इस गीत का इस्तेमाल किया।
लगभग दो वर्ष तक जेल मे रहने के बाद मजरूह सुल्तानपुरी ने एक बार फिर से नये जोशो-खरोश के साथ काम करना शुरू कर दिया। वर्ष 1953 में प्रदर्शित फिल्म फुटपाथ और आर-पार में अपने रचित गीतों की कामयाबी के बाद मजरूह सुल्तानपुरी फिल्म इंडस्ट्री मे पुन: अपनी खोई हुयी पहचान बनाने मे सफल हो गये।
मजरूह सुल्तानपुरी के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुये वर्ष 1993 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा वर्ष 1964 मे प्रदर्शित फिल्म ..दोस्ती .. में अपने रचित गीत ..चाहूंगा मै तुझे सांझ सवेरे ..के लिये वह सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गये।
मजरूह सुल्तान पुरी ने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने कैरियर मे लगभग 300 फिल्मों के लिये लगभग 4000 गीतों की रचना की। अपने रचित गीतों से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले महान शायर और गीतकार 24 मई
2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।
प्रेम.श्रवण
वार्ता
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