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नरमदिल और काम के प्रति समर्पित थे पृथ्वीराज

(पुण्यतिथि 29 मई के अवसर पर)
मुंबई 28 मई (वार्ता) अपनी कड़क आवाज, रौबदार भाव भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर लगभग चार दशकों तक सिने प्रेमियों के दिलो पर राज करने वाले भारतीय सिनेमा के युगपुरूष पृथ्वीराज कपूर निजी काम के प्रति समर्पित और नरम दिल वाले इंसान थे।
फिल्म इंडस्ट्री में पापा जी के नाम से मशहूर पृथ्वीराज अपने थियेटर के तीन घंटे के शो के समाप्त होने के पश्चात गेट पर एक झोली लेकर खड़े हो जाते थे ताकि शो देखकर बाहर निकलने वाले लोग झोली में कुछ पैसे डाल सके। इन पैंसो के जरिये पृथ्वीराज कपूर ने एक वर्कर फंड बनाया था जिसके जरिये वह पृथ्वी थियेटर में काम कर रहे सहयोगियों को जरूरत के समय मदद किया करते थे ।
पृथ्वीराज कपूर अपने काम के प्रति बेहद समर्पित थे। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने की पेशकश की लेकिन पृथ्वीराज कपूर ने नेहरू जी से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थियेटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते ।
पश्चिमी पंजाब के लायलपुर (वर्तमान में पाकिस्तान) में 03 नवंबर 1906 को जन्में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लयालपुर और लाहौर में पूरी की। उनके पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस उपनिरीक्षक थेबाद में उनके पिता का तबादला पेशावर में हो गया। उन्होंने आगे की पढ़ाई पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से की। उन्होंने कानून की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। क्योकि उस समय तक उनका रूझान थियेटर की ओर हो गया था। महज 18 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह हो गया। वर्ष 1928 में अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर पृथ्वीराज कपूर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे।
प्रेम, उप्रेती
जारी वार्ता
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