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बहुमुखी प्रतिभा से लोगों को मंत्रमुग्ध कर रहे हैं गुलजार

..जन्मदिन 18 अगस्त के अवसर पर ..
मुबई 17 अगस्त (वार्ता) मुशायरों और महफिलों से मिली शोहरत तथा कामयाबी ने कभी मोटर मैकेनिक का काम करने वाले ..गुलजार .. को पिछले पांच दशक में फिल्म जगत का एक अजीम शायर और गीतकार बना दिया है।
तत्काली पंजाब.अब पाकिस्तान के.झेलम जिले के एक छोटे से कस्बे दीना में सिख परिवार कालरा अरोरा घर 18 अगस्त 1936 को जन्मे संपूर्ण सिंह कालरा ऊर्फ गुलजार को स्कूल के दिनों से ही शेरो-शायरी और वाद्य संगीत का शौक था। कॉलेज के दिनों में उनका यह शौक परवान चढने लगा और वह अक्सर मशहूर सितार वादक रविशंकर और सरोद वादक अली अकबर खान के कार्यक्रमों में जाया करते थे ।
भारत विभाजन के बाद गुलजार का परिवार अमृतसर में बस गया लेकिन गुलजार ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई का रूख किया और वर्ली में एक गैराज में कार मकैनिक का काम करने लगे। फुर्सत के वक्त में वह कविताएं लिखा करते थे। इसी दौरान वह फिल्म से जुडे लोगों के संपर्क में आए और निर्देशक बिमल राय के सहायक बन गए। बाद में उन्होंने निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी और हेमन्त कुमार के सहायक रूप में भी काम किया। इसके बाद कवि के रूप मे गुलजार प्रोग्रेसिव रायर्टस एसोसिऐशन पी.डब्लू.ए से जुड़े गये।
गुलजार ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत वर्ष 1961 मे विमल राय के सहायक के रूप में की। गुलजार ने ऋषिकेश मुखर्जी और हेमन्त कुमार के सहायक के तौर पर भी काम किया। गीतकार के रूप मे गुलजार ने पहला गाना ...मेरा गोरा अंग लेई ले..वर्ष 1963 मे प्रदर्शित विमल राय की फिल्म बंदिनी के लिये लिखा। गुलजार ने वर्ष 1971 मे फिल्म ..मेरे अपने.. के जरिये निर्देशन के क्षेत्र मे भी कदम रखा। इस फिल्म की सफलता के बाद गुलजार ने कोशिश .परिचय.अचानक .खूशबू.आंधी.मौसम.किनारा.किताब.नमकीन.अंगूर .इजाजत.लिबास .लेकिन.माचिस.और हू तू तू जैसी कई फिल्में निदेर्शित भी की।
प्रेम, संतोष
जारी वार्ता
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