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टाइटल गीत लिखने में माहिर थे हसरत जयपुरी

(पुण्यतिथि 17 सितंबर के अवसर पर )
मुम्बई 16 सितंबर (वार्ता) हिन्दी फिल्मों में जब भी टाइटल गीतों का जिक्र होता है गीतकार हसरत जयपुर का नाम सबसे पहले लिया जाता है। हसरत जयपुरी ने हर तरह के गीत लिखे लेकिन फिल्मों के टाइटल पर गीत लिखने
में उन्हें महारत हासिल थी ।
हिन्दी फिल्मों के स्वर्णयुग के दौरान टाइटल गीत लिखना बड़ी बात समझी जाती थी । निर्माताओं को जब भी टाइटल गीत की जरूरत होती थी। हसरत जयपुरी से गीत लिखवाने की गुजारिश की जाती थी ।उनके लिखे टाइटल गीतों ने कई फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी । हसरत जयपुरी के लिखे कुछ टाइटल गीत हैं ‘दीवाना मुझको लोग कहें (दीवाना),‘दिल एक मंदिर है’,(दिल एक मंदिर), ‘रात और दिन दीया जले’( रात और दिन), तेरे घर के सामने इक घर बनाऊंगा,(तेरे घर के सामने)‘ऐन इवनिंग इन पेरिस’(ऐन इवनिंग इन पेरिस),‘गुमनाम है कोई बदनाम है कोई,(गुमनाम) ‘दो जासूस करें महसूस,(दो जासूस)आदि ।
15 अप्रैल 1922 को जन्में हसरत जयपुरी का मूल नाम इकबाल हुसैन था। उन्होंने जयपुर में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद अपने दादा फिदा हुसैन से उर्दू और फारसी की तालीम हासिल की । बीस वर्ष का होने तक उनका रुझान शेरो-शायरी की तरफ होने लगा और वह छोटी-छोटी कविताएं लिखने लगे।
वर्ष 1940 मे नौकरी की तलाश में हसरत जयपुरी ने मुम्बई का रूख किया और आजीविका के लिए वहां बस कंडक्टर के रूप में नौकरी करने लगे। इस काम के लिये उन्हे मात्र 11 रूपये प्रति माह वेतन मिलता था। इस बीच उन्होंने मुशायरों के कार्यक्रम में भाग लेना शुरू किया। उसी दौरान एक कार्यक्रम में पृथ्वीराज कपूर उनके गीत को सुनकर काफी प्रभावित हुये और उन्होने अपने पुत्र राजकपूर को हसरत जयपुरी से मिलने की सलाह दी।
प्रेम आशा
जारी वार्ता
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