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बेगम अख्तर की आवाज का जादू आज भी है कायम

..जन्मदिवस 07 अक्तूबर के अवसर पर ..
मुंबई, 06 अक्तूबर (वार्ता) ये मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया जैसी गजलों से श्रोताओं को दीवाना बनाने वाली बेगम अख्तर ने एक बार निश्चय कर लिया था कि वह कभी गायिका नहीं बनेगी।
बचपन में बेगम अख्तर उस्ताद मोहम्मद खान से संगीत की शिक्षा लिया करती थीं। इसी दौरान एक ऐसी घटना हुयी कि बेगम अख्तर ने गाना सीखने से इनकार कर दिया। उन दिनों बेगम अख्तर से सही सुर नहीं लगते थे। उनके गुरु ने उन्हें कई बार सिखाया और जब वह नहीं सीख पायी तो उन्हें डांट दिया। बेगम अख्तर ने रोते हुये उनसे कहा ..हमसे नहीं बनता नानाजी .मैं गाना नहीं सीखूंगी। उनके उस्ताद ने कहा ..बस इतने में हार मान ली तुमने ..नहीं बिटो ऐसे हिम्मत नहीं हारते ..मेरी बहादुर बिटिया.चलो एक बार फिर से सुर लगाने मे जुट जाओ। ...उनकी बात सुनकर बेगम अख्तर ने फिर से रियाज शुरू की और सही सुर लगाये।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में सात अक्टूबर 1914 में जन्मी बेगम फैजाबाद में सारंगी के उस्ताद इमान खां और अता मोहम्मद खान से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा ली। उन्होंने मोहम्मद खान, अब्दुल वहीद खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखा। तीस के दशक में बेगम अख्तर पारसी थियेटर से जुड़ गयी। नाटकों में काम करने के कारण उनका रियाज छूट गया जिससे मोहम्मद अता खान काफी नाराज हुये और उन्होंने कहा,..जब तक तुम नाटक में काम करना नहीं छोडती मैं
तुम्हें गाना नहीं सिखाउंगा। उनकी इस बात पर बेगम अख्तर ने कहा, “आप सिर्फ एक बार मेरा नाटक देखने आ जाये उसके बाद आप जो कहेगे मैं करूंगी।”
उस रात मोहम्मद अता खान बेगम अख्तर के नाटक ..तुर्की हूर..देखने गये। जब बेगम अख्तर ने उस नाटक का गाना ..चल री मोरी नैय्या..गाया तो उनकी आंखों में आंसू आ गये और नाटक समाप्त होने के बाद बेगम अख्तर से उन्होंने कहा ..बिटिया तू सच्ची अदाकारा है। जब तक चाहो नाटक में काम करो। नाटकों में मिली शोहरत के बाद बेगम अख्तर को कलकार की ईस्ट इंडिया कंपनी में अभिनय करने का मौका मिला। बतौर अभिनेत्री बेगम अख्तर ने ..एक दिन का बादशाह ..से अपने सिने कैरियर की शुरुआत की लेकिन इस फिल्म की असफलता के कारण अभिनेत्री के रूप में वह कुछ ख़ास पहचान नहीं बना पायी।
प्रेम.श्रवण
जारी वार्ता
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