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बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे गुरुदत्त

(पुण्यतिथि 10 अक्टूबर के अवसर पर )
मुंबई 09 अक्टूबर (वार्ता) भारतीय सिनेमा जगत में गुरुदत्त को एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने फिल्म निर्माण,निर्देशन,नृत्य निर्देशन और अभिनय की प्रतिभा से दर्शको को अपना दीवाना बनाया ।
09 जुलाई 1925 को कर्नाटक के बेंगलुरु में एक मध्यम वर्गीय बाह्मण परिवार में जन्में गुरुदत्त (मूल नाम वसंत कुमार शिवशंकर राव पादुकोण) का रूझान बचपन से ही नृत्य और संगीत की तरफ था। उनके पिता शिवशंकर पादुकोण एक स्कूल में हेड मास्टर के थे जबकि उनकी मां भी स्कूल में ही शिक्षिका थीं। गुरुदत्त ने अपनी प्रांरभिक शिक्षा कलकत्ता में पूरी की। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से उन्हें मैट्रिक के बाद पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी।संगीत के प्रति शौक को पूरा करने के लिये उन्होंने अपने चाचा की मदद से पांच वर्ष के लिये छात्रवृत्ति हासिल की और अल्मोडा स्थित उदय शंकर इडिया कल्चर सेंटर मे दाखिला ले लिया जहां उस्ताद उदय शंकर से नृत्य सीखा।
गुरुदत्त ने इस दौरान टेलीफोन ऑरेटर के रूप में भी एक मिल में काम भी किया। उदय शंकर से पांच वर्ष तक नृत्य सिखने के बाद गुरुदत्त पुणे के प्रभात स्टूडियो मे तीन वर्ष के अनुबंध पर बतौर नृत्य निर्देशक शामिल कर लिये गये। वर्ष 1946 मे गुरुदत्त ने प्रभात स्टूडियो की निर्मित फिल् ‘हम एक हैं’ से बतौर कोरियोग्राफर सिने कैरियर की शुरूआत की। उन्हें इस दौरान प्रभात स्टूडियो की कुछ फिल्मों मे अभिनय करने मौका भी मिला। प्रभात स्टूडियो के साथ किये गये अनुबंध की समाप्ति के बाद वह अपने घर मांटूगा लौट आये। इस दौरान वह लघु कहानियां लिखने लगे जिसे वह छपने के लिये प्रकाशक के पास भेज दिया करते थे। इसी दौरान उन्होंने ‘प्यासा’ की कहानी भी लिखी जिस पर उन्होंने बाद में फिल्म भी बनाई।
वर्ष 1951 में प्रदर्शित देवानंद की फिल्म ‘बाजी’ की सफलता के बाद गुरुदत्त बतौर निर्देशक अपनी पचान बनाने में कामयाब हो गये।इस फिल्म के निर्माण के दौरान उनका झुकाव पार्श्वगायिका गीता राय की ओर हो गया और वर्ष 1953 में उनसे शादी कर ली। वर्ष 1952 मे अभिनेत्री गीताबाली की बड़ी बहन हरिदर्शन कौर के साथ मिलकर गुरुदत्त ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र मे भी कदम रख दिया लेकिन वर्ष 1953 मे प्रदर्शित फिल्म बाज की नाकामयाबी के बाद गुरुदत्त ने स्वयं को उनके बैनर से अलग कर लिया और इसके बाद उन्होंने अपनी खुद की फिल्म कंपनी और स्टूडियो बनायी जिसके बैनर तले वर्ष 1954 में उन्होंने फिल्म ‘आर पार’ का निर्माण किया।
प्रेम आशा
जारी वार्ता
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