राज्य » गुजरात / महाराष्ट्रPosted at: Nov 21 2019 12:56PM भारतीय सिनेमा के गांधी थे वही शांतारामपणजी, 21 नवंबर (वार्ता) महान फिल्मकार वही शांताराम के पुत्र किरण शांताराम को इस बात का गहरा दुख है कि केंद्र सरकार ने उनके पिता की विरासत एवं स्मृति को सुरक्षित करने के लिए कोई उल्लेखनीय कार्य आज तक नही किया। शांताराम की स्मृति में स्थापित न्यास के अध्यक्ष किरण शांताराम ने 50वें अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह के दौरान एक भेंन्ट वार्ता में यह क्षोभ व्यक्त किया। अपने पिता की तरह गांधी टोपी पहने एवं विनम्र तथा शालीन व्यक्तित्व के धनी श्री शांताराम ने यूनीवार्ता से कहा कि दादा साहब फाल्के के बाद अगर भारतीय सिनेमा में कोई बड़ी हस्ती थी तो उनके पिता थे लेकिन सरकार ने उनकी सुध नहीं ली। यह पूछे जाने पर की न्यास ने सरकार से कभी कोई मांग नही की,इस पर श्री शांताराम ने कहा कि हमारा काम सरकार से मांग करना नही। यह तो सरकार को खुद सोचना चाहिए और करना चाहिए। मेरे पिता 1901 में पैदा हुए उन्होंने भारतीय सिनेमा को अपने जीवन के 70 साल दिए और कुल 92 फिल्में बनाई जिनमें 55 फिल्मों का निर्देशन किया और 25 फिल्मों में खुद काम किया। उन्होंने ‘दो आंखे बारह हाथ’, ‘नवरंग’ और ‘झनक झनक बाजे पायलिया’ जैसी अनेक अमर एवं कल्पनाशील फिल्में दी लेकिन आज की नई पीढ़ी को उन्हें याद करने की फुरसत नही। उन्होंने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि उनके पिता ने सिनेमा के जरिये उसी तरह समाज को बदलने का काम किया जिस तरह महात्मा गांधी ने किया। उन्हें हिंदी सिनेमा के गांधी कहा जाय तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गांधी के मूल्यों और आदर्शों पर उनके पिता चलते रहे और समाज सुधार का काम करते रहे। उनके लिए फ़िल्म मिशन था बाज़ार नही था। उन्होंने कहा कि वह खुद बचपन से अपने पिता के साथ लगे रहे और निर्देशन में हाथ बटाते रहे। नवरंग के सह निर्देशक भी वह थे। उन्होंने कहा कि उनके पिता ने जीवन काल मे ही वी शांताराम न्यास का गठन किया था और वह हर साल उनकी जयंती 18 नवंबर को उनकी स्मृति में कार्यक्रम आयोजित करते हैं। लेकिन उनकी स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए न तो कोई संग्रहालय है या स्थायी मंडप है न बड़ा कोई केंद्र सरकार का पुरस्कार। लेकिन फिर में कहूंगा हमारा काम सरकार से मांग करना नहीं है। यह सरकार को खुद सोचना है। फ़िल्म समारोह के उद्घाटन पर शंकर महादेवन के फ्यूज़न म्यूज़िक का जिक्र होने पर उन्होंने दो आंखे बारह हाथ के मशहूर गाने ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ को याद किया और कहा कि आज ऐसे गाने कहाँ बनते है। उस गाने में कितना बड़ा मानवीय संदेश छिपा था। अरविंद, शोभित वार्ता