राज्य » गुजरात / महाराष्ट्रPosted at: Dec 22 2019 12:10PM ‘आवाज दे कहां है, दुनिया मेरी जवां है’..पुण्यतिथि 23 दिसंबर के अवसर पर ..मुंबई 22 दिसंबर(वार्ता) भारतीय सिने जगत की मल्लिका-ए-रन्नुम के नाम से मशहूर पार्श्वगायिका अल्लाह वासी उर्फ नूरजहां ने अपनी आवाज में जिन गीतों को पिरोया वे आज भी अपना जादू बिखरते हैं।पंजाब के एक छोटे से कस्बे कसुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जब नूरजहां का 21 सितंबर 1926 को जन्म हुआ तो नवजात शिशु के रोने की आवाजको सुन बुआ ने कहा ..इस बच्ची के रोने में भी संगीत की लय है।.. नूरजहां के माता-पिता थियेटर में काम किया करते थे। घर में फिल्मी माहौल के कारण नूरजहां का रूझान बचपन से ही संगीत की ओर हो गया था। नूरजहां ने यह निश्चय किया कि बतौर पार्श्वगायिका अपनी पहचान बनायेगी। उनकी माता ने नूरजहां के मन मे संगीत के प्रति बढ़ते रूझान को पहचान लिया। उन्हें इस राह पर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया और उनके लिये संगीत सीखने की व्यवस्था घर पर ही करा दी।नूरजहां ने अपनी संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कजानबाई से और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उस्ताद गुलाम मोहम्मद तथा उस्ताद बडे गुलाम अली खान से ली थी । वर्ष 1930 में नूरजहां को इंडियन पिक्चर के बैनर तले बनी एक मूक फिल्म ‘हिन्द के तारे’ में काम करने का मौका मिला। इसके कुछ समय के बाद उनका परिवार पंजाब से कोलकाता चला आया। इस दौरान उन्हें करीब 11 मूक फिल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। वर्ष 1931 तक नूरजहां ने बतौर बाल कलाकार अपनी पहचान बना ली थी। वर्ष 1932 में प्रदर्शित फिल्म ‘शशि पुन्नु’ नूरजहां के सिने कैरियर की पहली टॉकी फिल्म थी। इस दौरान नूरजहां ने कोहिनूर यूनाईटेड आर्टिस्ट के बैनर तले बनी कुछ फिल्मों मे काम किया। कोलकाता मे उनकी मुलाकात फिल्म निर्माता पंचोली से हुयी। पंचोली को नूरजहां मे फिल्म इंडस्ट्री का एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने उसे अपनी नयी फिल्म ‘गुल ए बकावली’ के लिये चुन लिया। इस फिल्म के लिये नूरजहां ने अपना पहला गाना ..साला जवानियां माने और पिंजरे दे विच.. रिकार्ड कराया। प्रेम.संजयजारी.वार्ता