राज्य » गुजरात / महाराष्ट्रPosted at: Dec 31 2019 12:17PM हम छोड़ चले हैं महफिल को ..मुंबई 31 दिसंबर (वार्ता) बॉलीवुड में वर्ष 2019 कई मायनों में कई उपलब्धियों भरा वर्ष साबित हुआ लेकिन खय्याम ,गिरीश कर्नांड, विद्या सिन्हा, समेत कई अजीम शख्सियतों के चले जाने से ऐसा स्थान रिक्त हो गया है जो शायद हीं कभी पूरी हो सके। अपनी अपनी मधुर धुनो से लगभग पांच दशको से अपना दीवाना बनाने वाले संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी उर्फ ख्य्याम का 19 अगस्त को निधन हो गया। खय्याम का जन्म पंजाब में नवांशहर जिले के राहोन गांव में 18 फरवरी 1927 को हुआ था। बचपन के दिनों से हीं ख्य्याम का रूझान गीत-संगीत की ओर था और वह फिल्मों में काम कर शोहरत की बुलदियो तक पहुंचना चाहते थे। ख्य्याम की उम्र जब महज 10 वर्ष की थी तब वह बतौर अभिनेता बनने का सपना संजाये अपने घर से भागकर अपने चाचा के घर दिल्ली आ गये। ख्य्याम ने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंडित अमरनाथ और पंडित हुस्नलाल-भगतराम से हासिल की। इस बीच उनकी मुलातात पाकिस्तान के मशहूर संगीतकार जी.एस.चिश्ती से हुयी। जी.एस चिश्ती ने ख्य्याम को अपनी रचित एक धुन सुनाई और ख्य्याम से उस धुन के मुखड़े को गाने को कहा। ख्य्याम की लयबद्ध आवाज को सुन जी.एस.चिश्ती ने ख्य्याम को अपने सहायक के तौर पर अनुबंधित कर लिया । वर्ष 1948 में उन्हें बतौर अभिनेता एस. डी.नारंग की फिल्म ‘ये है जिंदगी’ में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1950 में ख्य्याम को फिल्म ‘बीबी’ को संगीतबद्ध किया। मोहम्मद रफी की आवाज में संगीतबद्ध उनका यह गीत ..अकेले में वो घबराये तो होंगे ..ख्य्याम के सिने करियर का पहला हिट गीत साबित हुआ। वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म ..शोला और शबनम .. में मोहम्मद रफी की आवाज में गीतकार कैफी आजमी रचित ..जीत हीं लेगें बाजी हम तुम ..और जाने क्या ढ़ूंढती रहती है ये आंखे मुझमें ..को संगीतबद्ध कर ख्य्याम ने अपनी संगीत प्रतिभा का लोहा मनवा लिया और अपना नाम फिल्म इंडस्ट्री के महानतम संगीतकारो में दर्ज करा दिया। खय्याम को फिल्म कभी कभी और उमराव जान के लिये सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। उन्हें पद्मभूषण सम्मान से भी नवाजा गया।प्रेम,जतिनजारी वार्ता