राज्य » गुजरात / महाराष्ट्रPosted at: Oct 7 2021 2:14PM मनोरंजन-राजकुमार दमदार अभिनय दो मुंबईवर्ष 1952 से 1957 तक राजकुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे।रंगीली के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली राजकुमार उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने अनमोल सहारा, अवसर, घमंड, नीलमणि और कृष्ण सुदामा जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं हुई।महबूब खान की साल 1957 मे रिलीज फिल्म 'मदर इंडिया' में राजकुमार गांव के एक किसान की छोटी सी भूमिका में दिखाई दिए। हालांकि यह फिल्म पूरी तरह अभिनेत्री नरगिस पर केन्द्रित थी। फिर भी वह अपने अभिनय की छाप छोडने में कामयाब रहे। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी मिली और फिल्म की सफलता के बाद वह अभिनेता के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। वर्ष 1959 में रिलीज फिल्म 'पैगाम' में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन राजकुमार ने यहां भी अपनी सशक्त भूमिका के जरिए दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। इसके बाद दिल अपना और प्रीत पराई, घराना, गोदान, दिल एक मंदिर और दूज का चांद जैसी फिल्मों मे मिली कामयाबी के जरिए वह दर्शको के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुंच गए जहां वह अपनी भूमिकाएं स्वयं चुन सकते थे। वर्ष 1965 में रिलीज फिल्म काजल की जबरदस्त कामयाबी के बाद राजकुमार ने अभिनेता के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली। बीआर चोपड़ा की 1965 में रिलीज फिल्म 'वक्त' में अपने लाजवाब अभिनय से वह एक बार फिर से दर्शक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे।फिल्म में राजकुमार का बोला गया एक संवाद 'चिनाय सेठ, जिनके घर शीशे के बने होते है वो दूसरो पे पत्थर नहीं फेंका करते' और 'चिनाय सेठ, ये छुरी बच्चों के खेलने की चीज नहीं। हाथ कट जाये तो खून निकल आता है' दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुए। वक्त की कामयाबी से राजकुमार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे।प्रेमजारी वार्ता