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मनोरंजन-मन्ना डे शास्त्रीय संगीत दो मुंबई

शुरूआती दौर में मन्ना डे की प्रतिभा को पहचानने वालों में संगीतकार शंकर-जयकिशन का नाम खास तौर पर उल्लेखनीय है। इस जोड़ी ने मन्ना डे से अलग-अलग शैली में गीत गवाये। उन्होंने मन्ना डे से आजा सनम मधुर चांदनी में हम जैसे रूमानी गीत और केतकी गुलाब जूही जैसे शास्त्रीय राग पर आधारित गीत भी गवाए लेकिन दिलचस्प बात है कि शुरआत में मन्ना डे ने यह गीत गाने से मना कर दिया था।
संगीतकार शंकर-जयकिशन ने जब मन्ना डे को केतकी गुलाब जूही गीत गाने की पेशकश की तो पहले तो वह इस बात से घबरा गये कि भला वह महान शास्त्रीय संगीतकार भीमसेन जोशी के साथ कैसे गा पाएंगे।मन्ना डे ने सोचा कि कुछ दिनों के लिए मुंबई से दूर पुणे चला जाए। जब बात पुरानी हो जायेगी तो वह वापस मुंबई लौट आएंगे और उन्हें भीमसेन जोशी के साथ गीत नहीं गाना पड़ेगा, लेकिन बाद में उन्होंने इसे चैंलेंज के रूप में लिया और केतकी गुलाब जूही को अमर बना दिया।
वर्ष 1950 में एस.डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में फिल्म मशाल में मन्ना डे को ऊपर गगन विशाल गीत गाने का मौका मिला।फिल्म और गीत की सफलता के बाद बतौर पार्श्वगायक वह अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये। मन्ना डे को अपने करियर के शुरआती दौर में अधिक शोहरत नहीं मिली।इसकी मुख्य वजह यह रही कि उनकी सधी हुई आवाज किसी गायक पर फिट नहीं बैठती थी। यही कारण है कि एक जमाने में वह हास्य अभिनेता महमूद और चरित्र अभिनेता प्राण के लिए गीत गाने को मजबूर थे।
प्रेम
जारी वार्ता
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