राज्य » गुजरात / महाराष्ट्रPosted at: Sep 8 2023 10:56AM मनोरंजन-आशा जन्मदिन दो अंतिम मुंबईवर्ष 1994 मे अपने पति आर. डी. बर्मन की मौत से उन्हें गहरा सदमा लगा और उन्होंने गायिकी से मुंह मोड़ लिया। लेकिन उनकी जादुई आवाज आखिर दुनिया से कब तक मुंह मोड़े रहती। उनकी आवाज की आवश्यकता हर संगीतकार को थी। कुछ महीनों की खामोशी के बाद इसकी पहल संगीतकार ए. आर. रहमान ने की।रहमान को अपने रंगीला फिल्म के लिये आशा की आवाज की जरूरत थी। उन्होंने 1995 में ‘तन्हा तन्हा’ गीत फिल्म रंगीला के लिये गाया। आशा के सिने करियर मे यह एक बार फिर महत्वपूर्ण मोड़ आया और उसके बाद उन्होने आजकल की धूम धड़ाके से भरे संगीत की दुनिया में कदम रख दिया। आशा भोंसले को बतौर गायिका आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिल चुका है। उन्हें वर्ष 2001 में फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व उन्हें उमराव जान और इजाजत में उनके गाये गीतों के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया।आज रिमिक्स गीतों के दौर में बनाये गये गानों पर यदि एक नजर डाले तो पायेंगे कि उनमें से अधिकांश नगमें आशा भोंसले ने ही गाये थे। इन रिमिक्स गानों में पान खाये सइयां हमार, पर्दे में रहने दो, जब चली ठंडी हवा, शहरी बाबू दिल लहरी बाबू, झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में, काली घटा छाये मोरा जिया घबराये, लोगो न मारो इसे, कह दूं तुम्हें या चुप रहूं और मेरी बेरी के बेर मत तोड़ो जैसे सुपरहिट गीत शामिल है। आशा भोंसले ने हिन्दी फिल्मी गीतों के अलावा गैर फिल्मी गाने गजल, भजन और कव्वालियो को भी बखूबी गाया है । जहां एक ओर संगीतकार जयदेव के संगीत निर्देशन में जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा की कविताओं को आशा ने अपने स्वर से सजाया है वही फिराक गोरखपुरी और जिगर मुरादाबादी के रचित कुछ शेर भी गाये है। जीवन की सच्चाइयों को बयान करती जिगर मुरादाबादी की गजल ‘मैं चमन में जहां भी रहूं मेरा हक है फसले बहार पर’ उनके जीवन को भी काफी हद तक बयां करती है ।हिंदी के अलावा आशा भोंसले ने मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और अन्य भाषा के भी अनेक गीत गाये हैं।प्रेमवार्ता