नयी दिल्ली, 23 मई (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अंगद यादव की जमानत को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप से आज इन्कार कर दिया।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की अवकाशकालीन खंडपीठ ने अंगद यादव की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि वह जमानत निरस्त करने के उच्च न्यायालय के आदेश में दखल देने के पक्ष में नहीं है। न्यायालय ने, हालांकि उच्च न्यायालय को उम्रकैद की सजा के खिलाफ अंगद यादव की अपील का छह महीने में निपटारा करने को कहा है।
अंगद यादव को हत्या के जुर्म में निचली अदालत से उम्रकैद की सजा हो चुकी है। फिलहाल उनकी अपील हाईकोर्ट में लंबित है। गौरतलब है कि जमानत के दौरान अंगद यादव पर हत्या का एक और मुकदमा दर्ज हुआ था, जिसके बाद उच्च न्यायालय ने पहले मामले में उन्हें मिली हुई जमानत भी खारिज कर दी है।
अवकाशकालीन खंडपीठ ने आज सुनवाई के दौरान अंगद यादव की ओर से पेश वकील विभा दत्त मखीजा की सारी दलीलें ठुकरा दीं। उनका कहना था कि उनके मुवक्किल पिछले 17 साल से जमानत पर थे और न्यायालय ने इतने साल बाद जमानत रद्द की है। इसके अलावा जिस दूसरे मामले को जमानत रद्द करने का आधार बनाया गया है उसमें अगर प्राथमिकी को ठीक से देखा जाये तो इन पर हत्या का मुकदमा नही बनता। उनके मुवक्किल के खिलाफ मुकदमें राजनीति से प्रेरित हैं, लेकिन खंडपीठ ने सभी दलीलें ठुकरा दी।
गौरतलब है कि लखनऊ की निचली अदालत ने वर्ष 2000 में हत्या के एक मामले में अंगद यादव को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अंगद यादव ने सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की उन्हें जमानत भी मिल गई थी।
वर्ष 2007 में अंगद यादव ने विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए उच्च न्यायालय से दोषसिद्धि पर भी रोक लगाने की मांग की, ताकि वह चुनाव लड़ सकें। उच्च न्यायालय ने उस समय उनकी दोषसिद्धि पर भी रोक लगा दी थी, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने चुनाव लड़ा और तत्कालीन बसपा सरकार में मंत्री बने। इसके बाद 2015 में आजमगढ़ में एक वकील की हत्या के मामले में अंगद यादव फिर आरोपी बने। गत 17 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने इस दूसरे मामले को देखते हुए उनकी जमानत और दोषसिद्धि पर लगाई गई रोक का आदेश निरस्त कर दिया। जिसके खिलाफ यादव ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
सुरेश जितेन्द्र
वार्ता