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भारत


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सरसंघ चालक ने जातिप्रथा की कुरीतियों का जिक्र करते हुए कहा कि अस्पृश्यता किसी कानून या शास्त्र से नही आयी, यह समाज की रूढिवादिता और दुर्भावना से आयी, हमारी सद्भावना ही उसका प्रतिकार कर सकेंगे। यही कार्य संघ के स्वयंसेवक करते हैं।
हिन्दुत्व से जुड़े सवालों पर कहा कि हिंदुत्व के लिए अंग्रेज़ी में हिन्दुइज़्म गलत शब्द है। ‘इज़्म’ एक बंद चीज मानी जाती है, यह कोई इज़्म नही है, एक प्रक्रिया है जो चलती रहती है। गांधी जी ने कहा है कि सत्य की अनवरत खोज का नाम हिंदुत्व है। इसीप्रकार से सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का कथन है कि हिंदुत्व एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि विश्व में हिंदुत्व को लेकर आक्रोश और हिंसा नही है, विश्व में हिंदुत्व की स्वीकार्यता बढ रही है। आक्रोश भारत में है, और यह आक्रोश हिंदुत्व विचार के कारण नहीं है, विचार को छोड़कर हमने अपने आचरण से जो विकृत उदाहरण प्रस्तुत किया, उसको लेकर है।
उन्होंने कहा, “हमारे मूल्यबोध के अनुसार जो आचरण करना चाहिये, उसे छोड़कर हम पोथीनिष्ठ बन गये, रूढीग्रस्त बन गये, और हमने बहुत सारा अधर्म धर्म के नाम पर किया, आज की देश काल परिस्थिति के अनुसार धर्म का आचरण हमको करना होगा, तो सारा आक्रोश विलुप्त हो जायेगा।” उन्होंने व्यावहारिक पहलू पर जोर देते हुए कहा, “जो तत्व व्यवहार में नही उतार सकते वह तत्व किस काम का? और यदि तत्व श्रेष्ठ है और व्यवहार गलत है तो भी वह तत्व किस काम का? पहले हिंदू अच्छा, सच्चा हिंदू बने, इसी कार्य को संघ कर रहा है।
भाषा के संबंध में पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी में काम करना पड़ता है इसलिये अन्य प्रांतों के लोग हिंदी सीखते हैं, हिंदी बोलने वालों को भी दूसरे प्रांत की एक भाषा को सीखना चाहिये, इससे मन मिलाप जल्दी होगा, और यह कार्य जल्दी हो जायेगा। उन्होंंने कहा कि हिन्दी को सर्वश्रेष्ठ भाषा मान कर आगे बढ़ाएंगे तो विरोध होगा लेकिन सुलभता के आधार पर हो और हिन्दी भाषी भी अपनी सुविधा से एक अन्य भाषा सीखे तो समस्या नहीं आएगा।
उन्होंने कहा, “भारत की सभी भाषायें हमारी भाषा है, ऐसा मन होना चाहिये, जहां रहते हैं वहां की भाषा आत्मसात करनी चाहिये, आपकी रुचि और आवश्यक्ता है तो विदेश की भाषा सीखिये और उसमें भी विदेशी लोगों से ज्यादा प्रवीण बनिये, इसमे भारत का गौरव है। अंग्रेजी को हटाना नहीं है, उसे यथास्थान रखें। पर हमारी शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए। उन्होंने संस्कृत के बारे में कहा, “संस्कृत को हम महत्व नही देते, इसलिये सरकार भी नही देती, यदि हमारा आग्रह रहे कि अपनी परंपरा का सारा साहित्य संस्कृत मे है, इसलिये हम संस्कृत सीखें, यदि यह हमारा मानस बने तो अपनी विरासत का अध्ययन भी ठीक से हो सकेगा।” उन्होंने कहा कि संस्कृत इतनी श्रेष्ठ भाषा है कि कंप्यूटर के लिये भी वह सर्वाधिक उपयोगी है। इसका गौरव यदि समाज में बढता है तो उसका भी चलन बढता है और उससे विद्यालय भी खुल जाते हैं, पढाने वाले भी मिल जाते हैं। सरकार की नीतियों को भी समाज का मानस प्रभावित करता है।
शिक्षा व्यवस्था को लेकर पूछे गये सवालों पर उन्होंने कहा कि आधुनिक शिक्षा की अच्छी बातें और परंपरा की अच्छी बातों को मिला कर नयी शिक्षा नीति बननी चाहिए। वेद, रामायण, गीता, त्रिपिटक, गुरुग्रंथ साहिब, उपनिषद आदि शास्त्रों का भी अध्ययन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज समाज में शिक्षा का स्तर कम नहीं हुआ है। शिक्षा देने वाले और शिक्षा लेने वाले का स्तर कम हुआ है। हर व्यक्ति को लगता है कि उसकी संतान डाक्टर या इंजीनियर बने जबकि होना यह चाहिए कि वह जो सीखे उससे उत्कृष्ट बने।
उन्होंने बाल गंगाधर तिलक उदाहरण देते हुए कहा, “तिलक जी ने अपने बेटे को पत्र लिखा कि जीवन में क्या पढना है तुम विचार करो, तुम अगर कहते हो कि मुझे जूते सिलना है तो मुझे आपत्ति नही, किंतु ध्यान रहे कि तुम्हारा सिला जूता इतना उत्कृष्त होना चाहिये कि पुणे का हर व्यक्ति कहे कि जूता वहीं से लेना है।” उन्होंने कहा कि क्या हम ऐसी भावना भर कर छात्रों को विद्यालय भेजते हैं कि जो मैं सीख रहा हूँ वह मैं उत्कृष्ट और उत्तम करूंगा, उसकी उत्कृष्टता में मेरी प्रतिष्ठा है? इसी प्रकार से शिक्षक को ये भान है क्या कि मैं अपने देश के बच्चों का भविष्य गढ रहा हूं? उन्होंने कहा कि हम उनको ज्यादा कमाओ का मंत्र देकर भेजेंगे, तो शिक्षक कितना भी अच्छा हो तो यह कार्य नही करेगा। अनेक महापुरुष अपने शिक्षकों को याद करते हैं क्योंकि उनके जीवन में शिक्षक का सहयोग रहा है।
उन्होंने कहा कि सर्वांगीण विचार कर के सभी स्तरों की शिक्षा का एक अच्छा मॉडल हमको खड़ा करना पड़ेगा, इसलिये शिक्षा नीति का आमूलचूल विचार हो एवं इसमें आवश्यक परिवर्तन किया जाये। आशा करते हैं नयी शिक्षा नीति में यह होगा।
महिला सुरक्षा के बारे में पूछे गये सवाल पर सरसंघचालक ने कहा कि महिला तब असुरक्षित होती है जब पुरुष उसे देखने की अपनी दृष्टि को बदलता है। उन्होंने कहा कि ऐसा वातावरण बनाना होगा जहां लोग अपनी पत्नी के अलावा सभी को मातृभाव से देखें। सुरक्षा के लिए महिलायें को सजग और सक्षम बनाना पड़ेगा, इसलिये किशोर आयु के लड़के और लड़कियों का प्रशिक्षण करना होगा।
सचिन
जारी वार्ता
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