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भारत


श्री जेटली ने कहा है कि यह राशि वर्ष 2014 से पहले ऋण दी गयी थी। संग्रप सरकार ने दिवालिया होने के बावजूद इस ऋण को छिपाया और ऋण पर ऋण देती गयी। आज संग्रप नेता बयान दे रहे हैं कि जब वे सत्ता से बाहर हुये थे तब मात्र 2.5 लाख करोड़ रुपये की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) थीं। सच्चाई यह है कि एनपीए को छिपाया गया था। वर्ष 2015 में जब रिजर्व बैंक संपदा गुणवत्ता समीक्षा की तब पता चला कि वास्तव में एनपीए 8.96 लाख करोड़ रुपये का है।
एनपीए की वूसली या उसे कम करने के लिए कोई उपाय नहीं किये गये जिसके कारण वर्ष 2014-15 के बाद न सिर्फ एनपीए बढ़ा बल्कि ब्याज भी उसमें जुड़ता गया। कुछ दिवालिया ऋण का पुनर्गठन किया गया ताकि दिवालयापन छिपा रह सके। एक खाता तभी तक ‘पर्फोमिंग खाता’ रहता है जब तक कि मूल राशि/ब्याज का भुगतान किया जाता रहता है। जब कर्जदार ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाता है तब वह दिवालिया होता है अौर उसके 90 दिनों के बाद उस खाते को एनपीए माना जाता है। संप्रग के कार्यकाल में इस तरह के अधिकांश खाते को एनपीए घोषित नहीं किया गया।
वित्त मंत्री ने कहा कि इस दिशा में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी संहिता (आईबीसी) के रूप में प्रभावी कदम उठाया गया है। इससे देश में कर्जदार और बैंक के रिश्ते में बदलाव आया है। आईबीसी के पारित हाेने के बाद ऋणदाता राष्ट्रीय कंपनी लॉ न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में जा सकता है जहाँ ऋण नहीं चुकाने वालों के विरुद्ध पेशेवर तरीके से कार्रवाई की जाती है। इसके बाद ऋणदाता समाधान योजना पेश करता है तथा संबंधित कंपनी के संभावित खरीददारों से निविदा आमंत्रित किये जाते हैं। जिनकी निविदा सबसे अधिक आकर्षक होती है उसे कंपनी का प्रबंधन सौंपा जाता है और इससे जो राशि मिलती है उसे बैंकों और अन्य ऋणदाताओं को दिया जाता है।
कुछ मामलों में बोलीकर्ता को विदेशी मुद्रा में भी भुगतान करना पड़ता है जो वर्तमान स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही मददगार है। रिजर्व बैंक ने पहले चरण में 12 ऐसे बड़े दिवालिया ऋण खातों की पहचान की है जिन पर करीब तीन लाख करोड़ रुपये का बकाया है। संप्रग के कार्यकाल में बैंकों ने इस राशि की वसूली के लिए कोई कदम नहीं उठाये।
श्री जेटली ने कहा “सच्चाई यह है श्री राहुल गांधी कि आपकी सरकार ने बैंकों को लूटने की अनुमति दी थी। अनुचित तरीके से ऋण दिये गये। इसमें आपकी सरकार की मिलीभगत थी। अब बैंक वसूली कर रहे हैं। कई बार एक ही झूठ को बोलकर आप सच्चाई नहीं बदल सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि एक भी कर्जदार का एक रुपया भी माफ नहीं किया गया है। ऋण नहीं चुकाने वाले आईबीसी के जरिये अपनी कंपनियाँ और संपदा गँवा रहे हैं। कुछ मामलों में कार्रवाई भी हो रही है। इन सभी कर्जदारों को वर्ष 2014 से पहले ऋण दिये गये थे। उस समय कई की ऋण सीमा लगातार बढ़ायी गयी थी। वर्ष 2014 से पहले जो दिवालिया हो गया उसके बावजूद फिर से पुनर्गठन किया गया और ऋण दिया गया। इस संबंध में उन्होंने उन 12 बड़े दिवालिया कर्जदारों की सूची भी दी है जिनके विरुद्ध आईबीसी के तहत कार्रवाई जारी है।
उन्हाेंने श्री गाँधी पर आरोप लगाया कि वह राफेल सौदे और एनपीए पर झूठ बोल रहे हैं और उनके लगातार झूठ बोलने से यह सवाल उठता है कि इस तरह की प्रवृत्ति वालों को सार्वजनिक मंच पर बयान देना चाहिए। सार्वजनिक मंच से बयान गंभीर गतिविधि होती है। यह ‘लाफ्टर चैलेंज’ नहीं होता है। इसे गले लगाने, आँख मारने या लगातार झूठ बोलने तक सीमित नहीं किया जा सकता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को गंभीरता से आत्मचिंतन करना चाहिये कि क्या एक ‘मसखरा राजकुमार’ को सार्वजनिक मंच के जरिये इस तरह के भ्रम फैलाने की अनुमति होनी चाहिये।
शेखर अजीत
वार्ता
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