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भारत


रंगमंच के शिखर पुरूष गिरीश कर्नाड नहीं रहे, कोविंद, मोदी आदि ने शाेक व्यक्त किया

बेंगलुरु/ नयी दिल्ली 10 जून (वार्ता) ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक, नाटककार, अभिनेता एवं फिल्म निर्देशक गिरीश कर्नाड का सोमवार सुबह निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे और लंबे समय से श्वास संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे।
कन्नड़ भाषा और भारतीय रंगमंच के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले श्री कनार्ड के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सूचना प्रसारण मंत्री ,प्रकाश जावड़ेकर, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और माक्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा देश के जाने माने रंगकर्मियों और रंग समीक्षकों ने भी गहरा शोक व्यक्त किया है और भारतीय रंगमंच के इतिहास की एक बड़ी क्षति बताया हैं।
श्री कोविंद ने ट्वीट कर कहा, “लेखक, अभिनेता और भारतीय रंगमंच के सशक्त हस्ताक्षर गिरीश कर्नाड के देहावसान के बारे में जानकर दुख हुआ है। उनके जाने से हमारे सांस्कृतिक जगत की अपूरणीय क्षति हुई है। उनके परिजनों और उनकी कला के अनगिनत प्रशंसकों के प्रति मेरी शोक-संवेदनाएं।”
श्री मोदी ने टि्वटर पर लिखा, “गिरीश कर्नाड को उनके बहुमुखी अभिनय के लिए हमेशा याद किया जाएगा। अपनी पसंद के मुद्दों पर उन्होंने पूरे उत्साह के साथ अपने विचार व्यक्त किये। उनके कार्य आने वाले वर्षों में भी लोकप्रिय बने रहेंगे। उनके निधन से दुखी हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।”
श्री जावड़ेकर ने ट्वीट किया, “भारतीय फिल्म कलाकार गिरीश कर्नाड के निधन से दुखी हूं। उनके परिजनों और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं।”
केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन तथा कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी श्री कर्नाड के निधन पर शोक व्यक्त किया है।
श्री विजयन ने अपने शोक संदेश में कहा कि श्री कर्नाड ने भारतीय सिनेमा तथा रंगमंच के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया है। उन्होंने धर्म निरपेक्षता के मूल्यों की रक्षा के लिए निर्भयता से लड़ाई लड़ी और हमेशा धार्मिक रूढ़िवादिता के खिलाफ लिखते रहे।
उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक ताकतों की ओर से उन्हें धमकियां भी मिलीं, लेकिन उन्होंने कभी भी उनसे समझौता नहीं किया और अपने लेखन तथा समाजिक कार्य को जारी रखा।
श्री थरूर ने कहा, “यह अपूरणीय क्षति है। कुछ महीने पहले उन्होंने अपने उत्कृष्ट एवं नये ऐतिहासिक अभिनय की एक प्रति मुझे भेजी थी। वह रचनात्मक कौशल के शिखर पर थे। उनकी पत्नी सरस तथा बेटे आर. कर्नाड के प्रति मेरी संवेदना। एक ऐसी ज्योति बुझ गयी, जो वर्षों तक लोगों के दिमाग में जलती रहेगी।”
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक अभिनेता रामगोपाल बजाज ,अनुराधा कपूर, देवेंद्र राज अंकुर, वर्तमान निदेशक सुरेश शर्मा प्रसिद्ध रंगकर्मी एम के रैना प्रसन्ना, उषा गांगुली, अरविंद गौड़ ने उनके निधन को भारतीय रंगमंच के लिए अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा है कि उन्होंंने ययाति ,तुगलक और नागमण्डल जैसे नाटकों ने रंगमंच को एक नई ऊंचाई दी। विजय तेंदुलकर, बादल सरकार और कर्नाड की तिकड़ी ने भारतीय रंगमंच को राष्ट्रीय स्तर पर ही नही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को पहचान दिलाई।
साहित्य, रंगमंच और सिनेमा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण से भी सम्मानित किया था इसके अलावा उन्हें संगीत नाट्य अकेडमी और साहित्य अकेडमी का भी पुरूस्कार मिला था।
19 मई, 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में कोंकणी परिवार में जन्मे श्री कर्नाड का बचपन के दिनों से रूझान अभिनय की ओर था। स्कूल के दिनों से ही गिरीश कर्नाड रंगमंच से जुड़ गये। जब वह 14 वर्ष के थे, तब अपने परिवार के साथ कर्नाटक के धारवाड़ जिले में आ गये।
उन्होंने कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए मुंबई आ गये। इसी बीच उन्हें प्रतिष्ठित रोड्स छात्रवृत्ति मिल गई और वह इंग्लैंड चले गये, जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के लिंकॉन तथा मॅगडेलन महाविद्यालयों से दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। उनका पूरा नाम गिरीश रघुनाथ कर्नाड था।
उन्होंने कई फिल्मों में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया। इनमें ‘निशांत’ ,‘मंथन’ ,‘स्वामी’, ‘पुकार’ ,‘इकबाल’ ,‘डोर’, ‘आशायें’ ,‘एक था टाइगर’ और ‘टाइगर जिंदा है’ प्रमुख हैं। वह प्रसिद्ध टीवी शो मालगुडी डेज में स्वामी के पिता के किरदार में भी नजर आए थे।
उनकी अंतिम फिल्म कन्नड़ भाषा में बनी ‘अपना देश’ थी। उनकी आखिरी हिंदी फ़िल्म ‘टाइगर ज़िंदा है’थी जिसमें उन्होंने डॉ. शेनॉय का किरदार निभाया था। उनकी मशहूर कन्नड़ फिल्मों में ‘तब्बालियू मगाने’, ‘ओंदानोंदु कलादाली’, ‘चेलुवी’, ‘कादु और कन्नुड़ु हेगादिती’ रहीं।

वह बहुचर्चित रचनात्मक लेखकों एवं कलाकारों में से एक थे। नाटककार, अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक, लेखक, पत्रकार, इन सभी भूमिकाओं को उन्होंने बख़ूबी एक साथ निभाया है। उनकी हिंदी के साथ-साथ कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छी पकड़ थी। उन्हें 1974 में पद्म श्री और वर्ष 1992 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कन्नड़ साहित्य के सृजनात्मक लेखन के लिए उन्हें वर्ष 1998 में भारत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान से भी सम्‍मानित किया गया था।
श्री कर्नाड ‘संगीत नाटक अकादमी’ के अध्यक्ष पद पर भी रहे। उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार,कालिदास सम्मान, टाटा लिटरेचर लाइव लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार और सिनेमा के क्षेत्र में भी कई पुरस्कार और सम्मान मिले। उन्होंने अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर के पद पर भी काम किया।
उनके प्रसिद्ध नाटकों में ययाति, तुगलक, हयवदन, अंजु मल्लिगे, अग्निमतु माले, ‘अग्नि और बरखा’ तथा नागमंडल आदि शामिल हैं। उनके ‘तुगलक’ नाटक का अंग्रेजी समेत विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया।

अरविंद जितेन्द्र
वार्ता
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