नयी दिल्ली, 03 जुलाई (वार्ता) केंद्रीय मंत्रिमंडल ने न्यूनतम वेतन में एकरूपता लाने तथा समय वेतन भुगतान सुनिश्चित करने वाले वेतन संहिता विधेयक, 2019 को बुधवार को मंजूरी दे दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में यहाँ हुई मंत्रिमंडल की बैठक में विधेयक के प्रारूप को मंजूरी देते हुये इसे संसद में पेश करने का प्रस्ताव स्वीकार किया गया। यह विधेयक 10 अगस्त 2017 को पिछली लोकसभा में पेश किया गया था। इसके बाद इसे संसद की स्थायी समिति के पास विचारार्थ भेजा गया था। समिति ने 16 दिसंबर 2018 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
सूत्रों ने बताया कि समिति की कुछ सिफारिशों को स्वीकार करते हुये विधेयक का प्रारूप नये सिरे से तैयार किया गया है। इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948, वेतन भुगतान अधिनियम, 1936, बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान वेतन अधिनियम, 1976 इसमें समाहित हो जायेंगे।
सरकार की योजना 32 केंद्रीय श्रम कानूनों को सरल कर उनकी जगह सिर्फ चार कानून बनाने की है जिसमें वेतन संहिता अधिनियम पहला कानून होगा।
सूत्रों के अनुसार, वेतन संहिता में न्यूनतम वेतन और समय पर वेतन भुगतान के लिए सेक्टर और वेतन की अधिकतम सीमा की शर्तों को समाप्त कर दिया गया है। अब हर सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारी, चाहे उनका वेतन कितना ही क्यों न हो, इस संहिता के दायरे में आयेंगे। इससे वेतन कानून के दायरे में आने वाले कार्यबल का प्रतिशत 40 प्रतिशत से बढ़कर 100 प्रतिशत हो जायेगा।
संहिता में न्यूनतम वेतन की गणना जीवन यापन की न्यूनतम जरूरतों के आधार पर की जायेगी। अभी कई राज्यों में न्यूनतम मजदूरी की गणना के एक से ज्यादा तरीके हैं। इस विधेयक के जरिये न्यूनतम वेतन तय करने के तरीके को सरल बनाया गया है। इसमें अब रोजगार की प्रकृति को शामिल नहीं किया जायेगा। यह मुख्यत: भौगोलिक क्षेत्र तथा कौशल पर निर्भर करेगा।
न्यूनतम वेतन, बोनस और समान वेतन को लेकर कर्मचारियों द्वारा दावा करने की अवधि पहले छह महीने से दो साल के बीच थी। अब इसमें एकरूपता लाते हुये इसे बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है।
सूत्रों ने बताया कि संहिता के माध्यम से वेतन की परिभाषा को सरल बनाया जायेगा जिससे अदालती मामलों में कमी आयेगी। अभी विभिन्न श्रम कानूनों के तहत वेतन की 12 तरह की परिभाषाएँ हैं।
अजीत.श्रवण
वार्ता