भारतPosted at: Sep 15 2019 4:34PM किसानों की आय बढाने में मददगार होगी ‘‘ वनश्री ’’
नयी दिल्ली 15 सितम्बर (वार्ता) वैज्ञानिकों ने छोटे किसानों की आय बढाने के लिए मुर्गा - मुर्गियों की एक ऐसी किस्म विकसित की है जो न केवल कुत्ते बिल्ली से अपनी रक्षा करने में समर्थ है बल्कि देखने में आकर्षक है तथा उसका मांस बेहद लजीज और अंडे देेने की क्षमता बहुत अधिक है।
पोल्ट्री अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद ने वर्षो के अनुसंधान के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त मुर्गी की नयी किस्म “ वनश्री ” किसानों के लिए जारी की । यह किस्म आन्ध्र प्रदेश और तेलंगना में बहुतायत से पाये जाने वाली ‘असील ’ और एक विदेशी नस्ल के मुर्गे से क्रास कर विकसित की गयी है। पीले - भूरे रंग की वनश्री बेहद आक्रमक और फुर्तिली है जो कुत्ते - बिल्ली से अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है तथा मौका मिलने पर हमला करने से नहीं चूकती। इस प्रजाति के नर में पीछे लम्बे -लम्बे पंख होते हैं जिससे वह काफी आकर्षक लगता है।
वनश्री को विकसित करने में अहम भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक चंदन पासवान ने यूनीवार्ता को बताया कि मुर्गी की यह प्रजाति सालाना 160 से 170 अंडे देने में सक्षम है । इसकी टांग और गर्दन काफी लम्बी होती है और वजन समय के साथ बढता जाता है । किसानोें के घर पिछवाड़े पालने के लिए विकसित की गयी वनश्री को विशेष चारे की जरुरत नहीं होती है । सुबह खुला छोड़ने के बाद यह खेत खलिहानों में अपना चारा खोज लेती है । शाम में वापस आने पर किसान अपने रसोई का बचाखुचा खाना खिला सकते हैं । यह किस्म 159 दिनों में प्रजनन योग्य हो जाती है ।
डा़ पासवान ने बताया कि किसान के एक बार वनश्री पाल लेने के बाद उसे दोबारा इसके चूजे खरीदने की जरुरत नहीं है । वह अपने घर पर ही प्राकृतिक ढंग से चूजे तैयार कर सकता है । अंडे के लिए मुर्गियां पालने वाले किसानों को पर्याप्त मात्रा में अंडा प्राप्त करने के लिए 52 से 60 सप्ताह के बाद नया चूजा पालना पड़ता है नहीं तो मुर्गियों में अंडा देने की क्षमता कम होती जाती है और उसे पालना महंगा होता जाता है जबकि वनश्री में ऐसा नहीं है ।
देश में 18- 19 देसी प्रजाति के मुर्गे - मुर्गियों की पहचान कर उनका निबंधन किया गया है जिनमें असील भी शामिल है । देसी किस्म की मुर्गियां सालाना औसतन 50 से 60 अंडे देती है । वनश्री को विकसित करने में अहम भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक संतोष हॉनसी , यू राजकुमार , एम के पाधी और आर एन चटर्जी की टीम ने असील प्रजाति को बार बार क्रास कराकर उसमें अंडा देने क्षमता को बढाया है ।
डा़ पासवान ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में वनश्री बेहद उपयुक्त है । यह विपरीत परिस्थितियों में भी किसानों के लिए लाभदायक है। आठ से बारह सप्ताह में इसका वजन 570 ग्राम से एक किलो से कुछ अधिक हो जाता है। बीस से चालीस सप्ताह के दौरान नर का वजन दो से तीन किलो तथा मादा का वजन करीब डेढ से दो किलो तक हो जाता है । इसका मांस बेहद स्वादिष्ट है और इसका अंडा भूरे रंग का होता है जिसका बाजार में सामान्य अंडों की तुलना में अधिक मूल्य मिलता है ।
संस्थान 26 राज्यों को चूजे की आपूर्ति कर रहा है। किसानों में वनश्री की भारी मांग है लेकिन संस्थान मांग के अनुरुप चूजे तैयार नहीं कर पा रहा है ।
अरुण जय
वार्ता