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भारत


अनुसूचित जनजातियों की सांस्कृतिक विशिष्टता को विलुप्त होने से बचाना अनिवार्य: अनसुईया

नयी दिल्ली 11 अक्टूबर (वार्ता) छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कहा है कि अनुसूचित जनजातियों की अनूठी परम्परा और संस्कृति हैं और इस सांस्कृतिक विशिष्टता को विलुप्त होने से बचाना अनिवार्य है।
सुश्री उइके ने शुक्रवार को यहां प्रवासी भारतीय केंद्र में जनजातीय मामलों से संबंधित राज्यपालों की उप-समिति की बैठक में कहा कि जनजातियों के नृत्य रूपों, बोली, और उपचार के पारंपरिक विधियां , धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों तथा लोक गीतों के दस्तावेजी संकलन की आवश्यकता है। उन्होंने अनुसूचित जनजातियों के सांस्कृतिक विशिष्टता को संरक्षित रखने के लिए संग्रहालय की स्थापना पर भी जोर दिया।
जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में ओडिशा, मेघालय, त्रिपुरा, झारखंड, असम और मिजोरम के राज्यपाल भी मौजूद थे।
सुश्र उईके ने वन पट्टों के आवंटन के लिए रद्द किए गए आवेदन पत्रों की समीक्षा किए जाने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में अब तक 401251 वन अधिकार प्रमाणपत्र वांछितों को प्रदान किया गया तथा इस मामले में यह ओडिशा के बाद दूसरा राज्य है।
उन्होंने कहा कि सामान्य श्रेणी के किसानों को दिए जा रहे 6000 रुपये की तुलना में जनजातीय किसानों को 12000 रुपये वार्षिक अनुदान के रूप में दिए जाने चाहिए। उन्होंने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक विशेष कोटा आवंटित किया जाने और पुनर्वास प्रक्रिया के हिस्से के रूप में एक आवास प्रदान किया जाने का भी सुझाव दिया।
जनजातीय क्षेत्रों में विशेष आवासीय विद्यालयों के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए बस्तर में एक 'केंद्रीय विद्यालय' स्थापित की जानी चाहिए। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के हिस्से के रूप में जनजातियों की मातृभाषा (स्थानीय भाषा) को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
सुश्र उईके ने जनजातियों के स्वास्थ्य और स्वच्छता की स्थिति में सुधार के संदर्भ में कहा कि अनुसूचित जनजातियों को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की मौजूदगी के बावजूद, जनजातियां बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं क्योंकि दूरदराज के क्षेत्रों में कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजातियों को प्राकृतिक दवाओं पर पूरा भरोसा है और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और आयुर्वेदिक इकाई स्थापित की जानी चाहिए।
टंडन आशा
वार्ता
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