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भारत


निराला के कहने पर बॉम्बे टॉकीज का प्रस्ताव ठुकराया गिरिजा कुमार माथुर ने

नई दिल्ली , 14 अक्टूबर (वार्ता) महाकवि निराला के कहने पर तारसप्तक के यशस्वी कवि गिरिजा कुमार माथुर ने फिल्मों में गीत लिखने का बॉम्बे टॉकीज का प्रस्ताव ठुकरा दिया था और स्वदेशप्रेम के कारण वॉइस ऑफ अमेरिका की नौकरी बीच मे छोड़ कर वे भारत लौट गए थे।
बाइस अगस्त 1919 को मध्यप्रदेश के गुना में जन्मे गिरिजा कुमार माथुर की जन्मशती पर साहित्य अकेडमी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के बाद उनके पुत्र पवन माथुर ने यूनीवार्ता से बातचीत में यह बात कही।
संगोष्ठी में आकाशवाणी के अतिरिक्त महानिदेशक एवं दूरदर्शन के उप महानिदेशक गिरिजाकुमार माथुर के रचना संचयन का लोकार्पण भी किया गया जिसका सम्पादन श्री पवन माथुर ने किया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे श्री पवन माथुर ने बताया कि उनके पिता को शुरू में काफी जीवन संघर्ष करना पड़ा और वे शुरू में आजीविका के लिए रेडियो में कार्यक्रम देते थे तो उन्हें पांच रुपये का पारिश्रमिक मिलता था। तब किसी ने यह नही सोचा होगा कि वे एक दिन रेडियो के अतिरिक्त महानिदेशक नियुक्त होंगे। जब वह लखनऊ में अंग्रेजी से एम ए कर रहे थे तब उनकी मुलाकात निराला और रामविलास शर्मा से हुई थी। निराला ने मेरे पिता के कविता संग्रह मंजीर की भूमिका भी लिखी थी। मेरे पिता को गीत लिखने का आफर बॉम्बे टॉकीज से तब आया था। उस समय उनकी उम्र 22 साल थी। तब निराला जी ने कहा कि कलम को पेट से बांधना ठीक नही और निराला की सलाह पर पिताजी ने वह आफर ठुकरा दिया था।वे 1941 में रेडियो में आये और 1950 में उन्हें वॉइस ऑफ अमरीका में हिंदी यूनिट खोलने का मौका मिला पर एक डेढ़ साल के भीतर ही वहां की नौकरी छोड़ कर वह भारत लौट आए और फिर उन्हें दोबाराजीवन संघर्ष करना पड़ा ।फिर वे परीक्षा पास कर दोबारा रेडियो में आये और विविध भारती के पहले निदेशक बने।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि अभी तक गिरिजा कुमार माथुर का सम्यक मूल्यांकन नही हुआ। वह हिंदी के फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ है और उनकी कविताओं में चित्रात्मकता अंग्रेजी कवि जॉन कीट्स से कम नहीं थी। उन्होंने उस जमाने मे उन्होंने माब लिचिंग पर कविता लिखी थी।
प्रसिद्ध आलोचक अजय तिवारी ने कहा कि ब्रिटिश शासन काल मे रेडियो की नौकरी करने के कारण उन्होंने अपनी प्रगतिशीलता को घोषित नहीं किया , लेकिन वह केवल रूमानी कवि नहीं थे। वह प्रगतिशील चेतना के भी कवि थे। समारोह को वयोवृद्ध आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी , अकादमी के हिंदी संयोजक चितरंजन मिश्र ने भी सम्बोधित किया ।
अरविंद टंडन
वार्ता
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