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भारत


शैलेन्द्र में शेक्सपियर और गालिब जैसी ऊंचाई थी

नई दिल्ली , 15 नवम्बर (वार्ता) ब्रिटेन में रह रहे हिंदी के प्रसिद्ध प्रवासी लेखक तेजेन्द्र शर्मा ने कहा है कि मशहूर गीतकार शैलेन्द्र के गीतों के भावों में शेक्सपियर और ग़ालिब जैसी ऊंचाई थी लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदी साहित्य में उनकी उपेक्षा की गई।
भारत की यात्रा पर आये श्री शर्मा ने साहित्य अकादमी में आयोजित अपने व्याख्यान में यह बात कही। प्रख्यात अंग्रेजी लेखक विक्रम सेठ की तरह मेंबर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर सम्मान से विभूषित एक मात्र हिंदी लेखक श्री शर्मा ने यूनीवार्ता को बताया कि उर्दू साहित्य ने साहिर ,मजरूह, कैफ़ी जैसे अनेक फिल्मी गीतकारों को लेखक माना और उसे जगह दी लेकिन शैलेन्द्र की हिंदी साहित्य में घोर उपेक्षा की गई । उन्हें लेखक नहीं माना गया और साहित्य अकादमी ने कभी उन्हें याद नहीं किया लेकिन अब साहित्य अकादमी ने उन पर ध्यान देना शुरू किया है जिसका नतीजा यह है कि आज उनपर यह कार्यक्रम हो रहा है।
उन्होंने कहा कि शैलेन्द्र एक मात्र ऐसे प्रगतिशील कवि गीतकार है जिनमें निराशा का कोई भाव नही है बल्कि वह सकारात्मक दृष्टिकोण के रचनाकार है। उनमें वैश्विक दृष्टिकोण भी है और उनके गीत विदेशों में भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने कहा कि शैलेन्द्र ने गीतों की परिभाषा बदली और वह जीवन में उल्लास ,उमंग तथा इंसानों में आपसी प्रेम मोहब्बत के कवि है। इतना ही नही उन्होंने फिल्मी गीतों में स्त्री विमर्श की भी शुरुआत की । गाइड फ़िल्म का लोकप्रिय गाना कांटों से खींच के ये आँचल इसका उदाहरण है। उन्होंने कहा कि उन्हें अफसोस है कि वह बचपन में शैलेन्द्र को देख नहीं पाए क्योंकि उनकी असामयिक मृत्यु हो गई लेकिन उनके छोटे पुत्र से उनकी दोस्ती है जो कभी एयर इंडिया में उनके सहयोगी थे और आजकलः अमेरिका में किसी दूसरी विमान सेवा में काम करते है।
पंजाब के जागरोंन गांव में 21 अक्टूबर 1952 को जन्में और अपनी कहानियों के कारण भारत मे चर्चित श्री शर्मा ने कहा कि वह पिछले कई सालों से लंदन में हिंदी के लिए प्रचार प्रसार का काम करते है और भारत से आने वाले लेखकों के लिए कार्यक्रम आयोजित करते है और हाउस ऑफ लॉर्ड्स में भी कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं। इसके अलावा वह इंदु कथा सम्मान हर वर्ष आयोजित करते हैं । उनकी कई किताबें प्रकाशित हुई हैं और उन्हें हरियाणा तथा महाराष्ट्र अकादमी से पुरस्कार मिल चुका है।
अरविन्द जितेन्द्र
वार्ता
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