नयी दिल्ली, 03 जून (वार्ता) देश में इस समय जारी लू और भीषण गर्मी के प्रकोप से छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में लोगों की आजीविका अधिक प्रभावित हो रही है क्योंकि वहां अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं तथा गरीबी दर अधिक है वहां लू का प्रभाव और भी बढ़ा है।
ग्रामीण विकास क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठन ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया के निदेशक (छत्तीसगढ़) ने कहा कि इस समय प्रचंड गर्मी का सबसे अधिक प्रभाव छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में महिलाओं और कमज़ोर वर्ग के कामगारों पर पड़ रहा है।
उन्होंने गर्मी और लू के प्रभाव को कम करने के लिए ग्रामीण समुदायों की भलाई और आजीविका की सुरक्षा के लिए कृषि योजनाओं में लचीलेपन, बुनियादी ढांचे के विकास और लिंग-संवेदनशील हस्तक्षेपों को संबोधित करने वाली व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता पर जोर दिया है।
उन्होंने एक बयान में कहा कि छत्तीसगढ़ में ग्रामीण रोजगार के लिये गर्मियों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) मज़दूरी की मांग ज्यादा है।
छत्तीसगढ़ में मनरेगा श्रमिकों में महिला भागीदारी 55 प्रतिशत तक ऊँची है।
उन्होंने कहा,“लू ग्रामीण समुदायों के समक्ष बहुआयामी चुनौतियाँ पेश करती हैं, जो मुख्यतः स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र को प्रभावित करती हैं।”
उन्होंने कहा कि परिवारों में अक्सर प्राथमिक देखभाल करने वाली महिलाएं होती हैं जो खेतिहर मजदूर भी हैं।
तेज़ गर्मी का खामियाजा सबसे ज़्यादा इन महिलाओं को भुगतना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के लिए मनरेगा जैसे कार्यक्रमों में गर्मियों के दौरान सक्रियता बढ़ जाती है, जो मुख्य रूप से जल संरक्षण और सड़क निर्माण जैसे श्रम-आधारित कार्यों पर केंद्रित होते हैं। लेकिन मज़दूरों की सुविधा के उपायों के अभाव और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण 88 लाख पंजीकृत मजदूरों के लिए ऐसा मौसम अधिक जोखिम भरा हो जाता है।
संगठन का कहना है कि लू के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव व्यक्तिगत स्वास्थ्य से परे समग्र उत्पादकता और आय तक पड़ता है, और इससे स्त्री पुरुष विषमता भी बढ़ती है।
मनोहर.समीक्षा
वार्ता