नयी दिल्ली, 23 सितंबर (वार्ता) बाल पोर्नोग्राफी देखना, रखना या डाउनलोड करना पॉक्सो एक्ट और सूचना एवं तकनीकी कानून के तहत अपराध घोषित करने का उच्चतम न्यायालय का सोमवार का ‘ऐतिहासिक फैसला’ बच्चों को इस अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध से बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर मार्ग प्रशस्त करने वाला है।
याचिकाकर्ता भुवन रिभु ने फैसले के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भारत ने एक बार फिर बच्चों को इस अंतरराष्ट्रीय और संगठित अपराध से बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए रूपरेखा तैयार करके वैश्विक स्तर पर मार्ग प्रशस्त किया है।
स्वयंसेवी संस्था जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस (जेआरसीए) के संस्थापक और याचिकाकर्ता श्री रिभु ने कहा,“भारत ने एक बार फिर बच्चों को इस अंतरराष्ट्रीय और संगठित अपराध से बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए रूपरेखा तैयार करके वैश्विक स्तर पर मार्ग प्रशस्त किया है।”
उन्होंने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि इस फैसले का समाज, अपराध और बाल अधिकारों पर दीर्घकालिक और वैश्विक प्रभाव पड़ेगा और यह इतिहास में दर्ज हो जाएगा। जब कोई व्यक्ति ‘बाल शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ खोज रहा है और उसे डाउनलोड कर रहा है, तो वह हमारे बच्चों के बलात्कार की मांग कर रहा है।
श्री रिभु ने कहा कि यह फैसला 'बाल पोर्नोग्राफी' की पारंपरिक शब्दावली से भी अलग है, जिसे वयस्कों की भोग-विलास के रूप में देखा जाता है और ‘बाल शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ को अपराध के रूप में पेश करता है।
शीर्ष अदालत का फैसला मद्रास उच्च न्यायालय के 11 जनवरी, 2024 के आदेश को चुनौती देने वाली जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस द्वारा दायर याचिका पर 23 सितंबर को आया।
जेआरसीए द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में कहा गया था कि मद्रास उच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के आदेश पर गलत तरीके से भरोसा किया।
याचिका में यह भी कहा गया था कि,“सामग्री की प्रकृति और उसमें नाबालिगों की संलिप्तता इसे पोक्सो अधिनियम के प्रावधानों के अधीन बनाती है, जो इसे केरल उच्च न्यायालय के फैसले में विचार किए गए अपराध से अलग अपराध बनाती है।”
उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया कि जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस 120 से अधिक गैर सरकारी संगठनों का एक गठबंधन है जो पूरे भारत में बाल यौन शोषण, बाल तस्करी और बाल विवाह के खिलाफ काम कर रहा है।
बीरेंद्र.संजय
वार्ता