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शादी का सीजन आते ही कश्मीरी वाद्य यंत्र ‘तुंबकनारी’ की भारी मांग

श्रीनगर 02 जून (वार्ता) जम्मू-कश्मीर में शादियों का सीजन जोर पकड़ने के साथ ही सदियों पुराने मिट्टी के वाद्य यंत्र ‘तुंबकनारी’ की मांग इन दिनों चरम पर है।
इस वाद्य यंत्र के निर्माण काे लेकर कुम्हार दिन-रात ऑर्डर पूरा करने में लगे रहते हैं। अट्ठाइस वर्षीय मोहम्मद उमर कुमार सारा दिन दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले और उत्तरी कश्मीर और सोपोर समेत घाटी के अन्य जिलों में सोपोर आपूर्ति किए जाने वाले एक हजार टुकड़ों के ऑर्डर को पूरा करने के लिए श्रीनगर में अपनी निशात इकाई में अपने बिजली के पहिये पर सदियों पुराने मिट्टी के वाद्य यंत्र ‘तुंबकनारी’ बनाने में बिता रहे हैं।
एक वाणिज्य स्नातक उमर जो कुछ वर्ष पहले दुनिया भर में यह दावा करके सुर्खियों में आये थे कि मिट्टी से बने उसके हाथ से बने चमकीले बर्तन चीन और अमेरिका से मशीन से बने सामानों की तुलना में अधिक स्वच्छ हैं।
शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन कॉम्प्लेक्स में हाल ही में आयोजित जी20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक के दौरान उनके मिट्टी से बने पारंपरिक चाय के बर्तन या ‘समोवर’ को प्रदर्शित किया गया था, जहाँ प्रतिनिधियों के जाने के लिए एक शिल्प केंद्र स्थापित किया गया था।
उमर ने वर्तमान में अपने ग्राहकों को प्रसिद्ध कश्मीरी वाद्य यंत्र ‘तुंबकनारी’ ऑर्डर की आपूर्ति की समय सीमा को पूरा करने के लिए उत्साह से काम किया।
जम्मू और कश्मीर का सदियों पुराना वाद्य यंत्र, ‘तुंबकनारी’ एक मिट्टी की आकृति है, जिसका उपयोग विशेष रूप से शादियों के दौरान हर कश्मीरी समारोह में गायन के लिए किया जाता है, जिसकी जड़ें ईरान या मध्य एशिया में बहुत दूर तक फैली हुई मानी जाती हैं। संगीत वाद्ययंत्रों के 100 यंत्रों को पूरा करने में तीन दिन लगते हैं।
कश्मीर घाटी में मिट्टी के बर्तनों के उद्योग के लिए उमर के बड़े सपने हैं। वह इसे जीवन का एक नया पट्टा देने और आधुनिक समय के बराबर लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं ताकि कश्मीरी हाथ से बने मिट्टी के बर्तनों को अपने ग्राहक मिल सकें।
उन्हें लगभग पूरे साल डीलरों से बड़े ऑर्डर मिलते हैं जो उपकरण के एक तरफ चमड़े से ढक कर उन्हें बाजार में बेच रहे हैं। बाजार में एक बड़ी ‘तुंबकनारी’ की कीमत 250 रुपये और छोटी की कीमत 150 रुपये है।
उमर ने बताया कि मिट्टी के वाद्य यंत्र बनाने के लिए मध्य कश्मीर के बडगाम जिले से एक विशेष प्रकार की मिट्टी लाई जाती है। उन्होंने कहा कि इस तरह की मिट्टी का इस्तेमाल सब्जियां उगाने या घर बनाने में नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि सरकार ने अब उस क्षेत्र से मिट्टी की खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया है जोकि इस पारंपरिक व्यवसाय पर अड़चन डाल सकता है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि मिट्टी खोदने की अनुमति दी जाए ताकि यह परंपरा आजीविका अर्जित कर सके।
संजय राम
वार्ता
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