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लोकरुचि


प्रवासी पंक्षियों की चहचहाट से गुंजायमान है चंबल

प्रवासी पंक्षियों की चहचहाट से गुंजायमान है चंबल

इटावा 14 नवम्बर (वार्ता) अरसे तक दुर्दांत दस्यु गिरोहों की पनाहगार रही चंबल घाटी शरद ऋतु के आगमन के साथ 300 से ज्यादा दुलर्भ प्रजाति के प्रवासी पंक्षियों की करतल संगीत से गुंजायमान है।

चंबल सेंचुरी के डीएफओ आनंद कुमार ने बुधवार को ‘यूनीवार्ता’ को बताया कि चंबल सेंचुरी में सर्दी के मौसम में करीब 300 से अधिक प्रजाति के प्रवासी पक्षियों का बसेरा होता है जो चंबल की खूबसूरत को चार चांद लगा देता है। पीले फूलों के लिए विख्यात रही यह वादी उत्तराखंड की पर्वतीय वादियों से कहीं कमतर नहीं है । अंतर सिर्फ इतना है कि वहां पत्थरों के पहाड़ हैं, तो यहां मिट्टी के पहाड़ हैं। बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकती हैं ।

उन्होने बताया कि यहां आने वाले पक्षियों में साइबेरिया से पिनटेल डक, शोवलर, डक, कामनटील, डेल चिक, मेलर्ड, पेचर्ड, गारगेनी टेल तो उत्तर-पूर्व और मध्य एशिया से पोचर्ड, कामन सैंड पाइपर के साथ-साथ फ्लेमिंगो भी शामिल हैं। भारतीय पक्षियों में शिकरा, हरियल कबूतर, दर्जिन चिड़िया, पिट्टा, स्टॉप बिल डक आदि प्रमुख हैं।

श्री कुमार ने बताया कि स्वच्छ जल और बेहतर पारिस्थितिक तंत्र के कारण चंबल नदी न केवल जलीय जीवों को रास आती है बल्कि पक्षियों का भी बेहतर आश्रय स्थल है । यही वजह है कि यहां शीतकाल के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही यहां प्रवासी पक्षी आते हैं । हर साल जनवरी-फरवरी में होने वाले वार्षिक सर्वे में लगभग 300 प्रकार के पक्षियों की प्रजातियां चिह्नित की जाती हैं जिसमें कई ऐसे पक्षी भी मिलते हैं जो दुर्लभ श्रेणियों में है।


     श्री कुमार ने बताया कि कुख्यात डाकुओं की शरण स्थली के रूप में विख्यात चंबल घाटी सर्दी का मौसम शुरू होते ही प्रवासी पक्षियों से गुलजार होना शुरू हो गया है। चंबल की कई खासियतें हैं कि चंबल को डाकूओं की शरणस्थली के तौर पर जाना और पहचाना जाता है लेकिन चंबल में दूरस्थ से आने वाले हजारों प्रवासी पक्षियों ने चंबल की छवि को बदल दिया है। चंबल सेंचुरी का महत्व सर्दी के मौसम में अपने आप ही बढ़ जाता है क्योंकि चंबल सेंचुरी में कई लाख प्रवासी पक्षी सर्दी के मौसम में सालों दर साल से आ रहे है।

      वनाधिकारी ने बताया कि दुर्लभ जलचरों के सबसे बड़े संरक्षण स्थल के रूप में अपनी अलग पहचान बनाये चंबल सेंचुरी को इटावा आने वाले पर्यटक देख पाने में कामयाब होगे । चंबल सेंचुरी से जुड़े बड़े अफ़सर ऐसा मान करके चल रहे हैं। तीन राज्यों में फैली चंबल सेंचुरी का महत्व इतना है कि चंबल सेंचुरी में डॉल्फिन, घड़ियाल, मगर और कई प्रजाति के कछुए तो हमेशा रहते ही साथ ही कई ‘माईग्रेटी बर्ड’ भी साल भर रह करके चंबल की खूबसूरती को चार चाँद लगाती रहती है। चंबल सेंचुरी में करीब 300 से अधिक प्रजाति के दुर्लभ प्रवासी पक्षी आते हैं जो चंबल नदी को बेहद खूबसूरत बनाने में सहायक होते हैं।

       उन्होने बताया कि चंबल सेंचुरी में मुख्य आकर्षण विदेशों से आने वाले कोमन्टिल, कोटनटिल, स्पोटविल्डक, पिन्टैल, गैलियार्ड, कांट जैसे प्रवासी पक्षी है। ऐसा माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में दुधवा सेंचुरी को छोड़ करके कोई दूसरी सेंचुरी चंबल के बराबर वजूद वाली नहीं लग रही है। तीन राज्यों में पसरी चंबल सेंचुरी का महत्व लगातार इसलिये बढ़ता चला जा रहा है क्योकि चंबल सेंचुरी न केवल संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ रही है बल्कि सरकारें इस बात पर चिंतन करने में जुट गई हैं कि चंबल सेंचुरी के दायरे को और सरंक्षित किया जाये।

सं प्रदीप

वार्ता

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