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लोकरुचि


कुम्भ से पहले लहराई ध्वजा, रेती पर धर्म का राज स्थापित

कुम्भ से पहले लहराई ध्वजा, रेती पर धर्म का राज स्थापित

प्रयागराज,22 दिसम्बर (वार्ता) विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुम्भ मेले से पहले तीर्थराज प्रयाग में संगम की रेती पर धार्मिक अनुष्ठानों का श्रीगणेश वंदना कर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्रीपंच दशनाम आवाहन अखाड़ा, श्रीपंच अग्नि अखाड़ाें की धर्मध्वजा की स्थापना के साथ कुम्भ-2019 का शंखनाद हो गया।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरी महाराज ने बताया कि कुम्भ मेला निर्विघ्न संपन्न हो, इसी उद्देश्य से धर्म ध्वजा फहराई जाती है। ध्वाजारोहण होना इस बात की सूचना है कि कुम्भ मेला प्रारंभ हो चुका है। धर्म ध्वजा कुम्भ की भूमि में स्थापित करने के पीछे हमारी पुरानी मान्यता है। कुम्भ क्षेत्र में जाने के बाद हम सबसे पहले भूमि पूजन करके धर्म ध्वजा लगाते है। ध्वजा का जो दंड होता है वो बावन हाथ का होता है जिसमे जनेऊ की बावन गांठे होती है जो अखाड़ों की बावन मडियों की प्रतीक होती है ।

स्वामी हरि गिरि ने कहा, 52 हाथ के दण्ड (लकड़ी की बल्ली) के ऊपर भगवा रंग के कपडे को लपेटा गया और उसके ऊपर भगवान विष्णु दत्तात्रेय के मुकुट का मोरपंख धर्मध्वजा के शीर्ष पर रहा। साधु संतो ने दण्ड पर 52 जनेऊ की गांठों को एक दूसरे से जोड़ते हुए 52 हाथ के धर्मध्वजा पर लपेटे गए हैं। क्रेन की मदद से दण्ड पर लगे धर्म ध्वजा को खड़ा किया गया।

अखाड़ा के महामंत्री ने बताया कि धर्मध्वजा को खड़ी करने के लिए चारों कोनों पर तनियां (रस्सियां) बांधी गई। तनियों को उत्तर-पश्चिम कोने पर तेरह मढ़ी, पूर्व-उत्तर कोने पर चौदह मढ़ी, दक्षिण पूर्व कोने पर सोलह मढ़ी और दक्षिण पश्चिम कोने पर चार मढ़ी के महात्माओं ने संभाला। धर्म ध्वजा के मध्य से चारों ओर बने 52 हाथ की परिधि में कुम्भ तक पूजा-पाठ के लिए रहेगा। महामंत्री ने बताया कि अखाड़ों के पदाधिकारी और साधु संतो की उपस्थिति एंव सचिवों की देखरेख में ध्वज स्थापना से पहले पूजन किया गया। संन्यासियों की बावन मढ़ियों का प्रतिनिधित्व करते हुए पूरे बावन हाथ ऊंची धर्मध्वजा के लिए बावन बीते लंबी ध्वजा लगाई गई। उन्होने बताया कि कुंभ पर्व पर जहां अखाड़ों का शिविर लगता है, वहीं उनकी धर्मध्वजा भी लहराती रहती है। धर्म ध्वजों में अखाड़ा के आराध्य का चित्र अथवा धार्मिक चिन्ह होता है,जबकि अखाड़ा के आराध्य की प्रतिमा शिविर के मुख्य स्थान में स्थापित होते हैं।

उन्होने कहा कि यह केवल ध्वजा ही नहीं है। यह हमारे सनातन धर्म की पहचान है। इसलिए भगवा रंग के ध्वजा अपने आप में महत्वपूर्ण है। भगवा रंग माता पार्वती के रज का संकेत है। माता के रज को गेरूआ भी कहते हैं1 इसे शक्ति का प्रतीक मानते हुए स्वय भगवान नन्दी सूत के रूप में ध्वज में विराजमान रहते हैं। राजा, महराजा और धर्माचार्य बिना ध्वजा के कोई काम नहीं करते थे। राजा-महराजा भी युद्ध में दूसरे राज्य की ध्वजा पर प्रहार करते थे क्योंकि उस ध्वज का अपना महत्व होता है। ध्वज के धराशायी होने का मतलब राजा की हार होता है।

अधिकारियों के साथ हुई बैठक में उन्होने सुझाव दिया है कि प्रयागराज को कैसे प्रयागराज बनाया इस पर चिंता किया जाना चाहिए। जैसे देव प्रयाग, आनंद प्रयाग जितने भी प्रयाग है उनके नाम पर सड़कों और गलियों का नाम रखा जाना चाहिए। संगम क्षेत्र में काली सड़क का नाम “प्रयागराज सड़क” का नाम दिया जाना चाहिए जिससे लगे कि प्रयागराज में तीर्थों की उपस्थिति दर्ज है। महंत हरि गिरी ने कहा कि कुंभ तो अनादि काल से चला आ रहा है। सम्राट अकबर ने भले ही प्रयाग का नाम “अल्लाहाबाद ” कर दिया लेकिन वह भी कुंभ की महत्ता को नहीं बदल सका तो और लोग इसकी महत्ता को क्या बदलेंगे। सत्ता न किसी की थी, न है और न/न रहेगी। इस कुंभ मेले में जो कुछ कर लेगा उसका नाम जरूर रहेगा। अगर नहीं तो अयोध्या को देख लें। श्री कल्याण सिंह कई बार रहे, श्री राजनाथ सिंह रहे। ये कुछ बनाया नहीं सके। इनका दिया कुछ समय जला लेकिन बाद में दीपक बुझ गया। मैं चाहता हूं ऐसा दिया जलाओ, जो बुझे नहीं। अलगख ज्योति की तरह

उन्होंने बताया कि किसी भी अखाड़े के लिए भूमि पूजन से ही कुंभ क्षेत्र में धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत होती है, पर मौजगिरि में ही भूमि पूजन के कारण जूना, अग्नि, आवाहन अखाड़ों के लिए धर्मध्वजा की स्थापना पहला अनुष्ठान रहा।

कार्यक्रम में मेले के अनेक वरिष्ठ अधिकारियों समेत निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत नरेंद्र गिरि, जूना अखाड़े के महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरि, मंत्री नारायण गिरी, श्रीमहंत प्रेमगिरि, टीकरमाफी के हरिचैतन्य ब्रह्मचारी, अनि अखाड़ा के राजेन्द्र गिरी, अग्नि अखाडे के महामंत्री आशीष गिरी जूना अखाड़े के राष्ट्रीय प्रवक्ता महंत विद्यानंद सरस्वती समेत कई अन्य पदाधिकारी मौजूद थे।

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