प्रयागराज,25 दिसम्बर (वार्ता) गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन तट पर लगने वाले विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कुम्भ के लिए मंगलवार को हाथी पर चांदी के हौदे पर विराजमान अखाड़ा के आचार्य पीठाधीश्वर एवं महामण्डलेश्वर की सवारी के साथ शाही पेशवाई की शुरूआत हो गई।
पेशवाई एक धर्मिक शोभा यात्रा है जिसमें अखाडों के आचार्य पीठाधीश्वर, महामण्डलेश्वर, साधु-संत, और नागाओं का एक बड़ा समूह हाथी, घोड़ा, ऊंट और पालकी पर सवार होकर गंगा की रेती पर बने छावनी (कैम्प) में पहुंचता है।
पेशवाई में आचार्य महामण्डलेश्वर और श्रीमहंत रथों पर आरूढ़ होते हैं, उनके सचिव हाथी पर, घुड़सवार नागा अपने घोड़ों पर तथा अन्य साधु पैदल आगे रहते हैं। शाही ठाट-बाट के साथ अपनी कला प्रदर्शन करते हुए साधु-सन्त अपने लाव-लश्कर के साथ अपने-अपने गन्तव्य को पहुँचते हैं और इसे ही औपचारिक उपस्थिति माना जाता है।
पेशवाई निकलने से पहले मौजगिरी आश्रम में स्थापित देवता और त्रिशूल का वैदिक मंत्रो के साथ 11 बजे पूजन किया गया। उसके बाद हाथी, घोड़े पर सवार गाजे-बाजे के साथ शाही पेशवाई की शुरूआत हुई।
श्रीपंचदाशनाम जूना अखाड़ा और श्रीपंच अग्नि अखाड़ा की पेशवाई यमुना बैंक रोड स्थित मौजगिरी आश्रम से निकलकर त्रिवेणी मार्ग से होते हुए करीब छह किलोमीटर दूर झूंसी में गंगा की रेती पर स्थित छावनी के लिए प्रस्थान किया।
शोभयात्रा में सजे-धजे गज पर रखे चांदी के हौदे पर फूल-मालाओं से लदे जूना अखाड़ा के आचार्य पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरी, काशी सुमेरूपीठाधीश्वर नरेन्द्रानंद सरस्वती, अग्नि अखाड़ा के आचार्य पीठाधीश्वर रामकृष्णानंद, सभापति मुक्तानंद ब्रह्मचारी समेत 100 से अधिक रथों पर पदाधिकारी सवार हैं। जबकि चांदी की भव्य पालकी में अखाड़ा के आराध्य विराजमान होकर चल रहे हैं। शोभयात्रा तीन किलोमीटर से अधिक लम्बी है।
परम्परा के अनुसार पेशवाई में सबसे आगे ध्वज पताका, घोडे पर सवार नागा नगाडा बजाते चल रहे हैं। इसके साथ बैंडबाजा, हाथी, घोड़ा, ऊंट, पालकी और ट्रैक्टर शामिल रहे। हाथी, घोड़े, रथ, और ऊंटों की बेहतरीन सजावट मन को मोहने वाली है। उनकी सजावट को देखकर आंखों की पलके झपकने का नाम ही नहीं ले रही।
इन पर बैठे आचार्य पीठाधीश्वर, महामण्डलेश्वर और अन्य पदाधिकारी फूल और मालाओं से लैश है। इनके पीछे बैठे कनिष्ठ इनके सिर पर छत्र लगाये बैठे हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इलाहाबाद को “प्रयागराज” घोषित करने के बाद पहली बार श्रीपंच दशनाम जूना एवं अग्नि अखाड़ा की पेशवाई से गुलजार हुआ। इससे पहले इसका नाम इलाहबाद था जिसमें कई कुम्भ और अर्द्ध कुम्भ का आयोजन हो चुका है लेकिन प्रयागराज बनने के बाद यह पहला अवसर है।
विश्व के सबसे आलौकिक संगम तीेरे आबाद अस्थायी तंबुओं की कुंभ नगरी प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की रेती सनातन मतालम्बियों से पहलीबार गुलजार होगी।
पेशवाई में सबसे बड़ा आकर्षण नागा साधु थे। विभिन्न मुद्राओं में इन साधुओं के दर्शन को शहर की भीड़ सड़क के दोनो पटरी पर उमड़ पड़ी। संन्यासी अखाड़ों का यह एक प्रकार का शक्ति प्रदर्शन रहा।
पवनपुत्र हनुमान का पवित्र दिन मंगलवार को वो घड़ी भी आ गयी, जिसका इंतज़ार संगम में रहने वाले और दुनिया को बड़ी बेसब्री से रहता है,जब भक्तों को अपने उन गुरुओं के दर्शन की मुहमांगी मुराद मिलती है जो आम दिनों में सहज नहीं होता। सड़क के दोनो तरफ श्रद्धालु कतारबद्ध खड़े होकर साधु संतो पर फूल की वर्षा कर रहे हैं।
पेशवाई के लिए सुरक्षा के कड़े बन्दोबस्त किये गये हैं। कई थानों की पुलिस को भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लगाई गयी है।