इटावा , 20 मार्च (वार्ता) कभी मथुरा की लठ्ठामार होली से तुलना की जाने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) संरक्षक मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई की कपडा फाड होली आज गुजरे जमाने की बात हो चुकी है।
सैफई की कपडा फाड़ होली अब सिर्फ यादो मे सिमट करके रह गई है क्योंकि कपडा फाड की जगह अब फूलो की होली ने ले ली है । मुलायम की होली का अंदाज ही कुछ निराला है। सैफई मे मुलायम के घर के भीतर लान मे होली का जश्न सुबह से ही हर साल मनाया जाता रहा है जहॉ गांव के लोग होली के जश्न मे फाग के जरिये शामिल होते है वही पार्टी के छोटे बडे राजनेता भी होली के आंनद मे सराबोर होने के लिये दूर दराज से आते रहते है। रंगो से दूरी बना चुके मुलायम अब गुलाल और फूलो से होली खेल करके आंनद लेते है इसलिये होली के एक दिन पहले ही कानपुर और आगरा जैसे बडे महानगरो से खासी तादात मे फूलो को मंगवा लिया जाता है ।
संसदीय चुनाव का ऐलान होने के बाद इस दफा की होली पर रंग के कुछ ज्यादा ही चटक रहने की संभावनाए बनी हुई है । इसके साथ ही एक बात और भी प्रभावी नजर आती है क्योंकि मुलायम के अनुज शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन लिया है जिस कारण होली पर शिवपाल और उनके समर्थको की गैरमौजूदगी भी मुलायम के आंगन मे दिख सकती है ।
शिवपाल लगातार अपने भतीजे और समाजवादी मुखिया अखिलेश यादव के खिलाफ तीखे बयान तो देते ही रहे है इसके साथ ही पार्टी के महासचिव रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ फिरोजाबाद संसदीय सीट से शिवपाल के ताल ठोक देने से रिश्तो मे व्यापक तल्खी आई हुई है ।
सैफई मे कपडा फाड होली का क्रेज आज के करीब 22 साल पहले तक काफी हुआ करता था। करीब 22 साल पहले लोगो के कपडे फटने की वजह से खुद नेताजी ने ही कपडा फाडने पर रोक लगवा दी, तब से लगातार रोक लगी हुई है लेकिन कोई यह बता पाने कि स्थिति मे नही है कि यह कपडा फाड पंरपरा की शुरूआत कब हुई और किसने की ।
नेता जी के घर पर के पास बना हुआ तालाब ही होली के उत्साह का सबसे बडा गवाह है क्योंकि 1989 मे मुख्यमंत्री बनने से पहले ही इसी तालाब मे खुद नेता जी गांव के बुर्जगो का डुबो करके होली की शुरूआत करते थे । अब वो दौर सब बदल गया है । कई बार कई अहम राजनेताओ के कपडे होली के उत्साह मे फट गये जिससे उमंग मे खलल पडने के बाद इस प्रथा को बदला गया ।
मुलायम की एक खासियत है कि वो होली से लेकर दूसरे पंरपरागत त्यौहारो को अपने गांव सैफई मे अपने परिवार और गांव वालो के बीच ही आकर ही मनाते है। इटावा में अब से 35-37 वर्ष पहले यादव बाहुल्य गांवों में फाग जमकर होती थी । बूढ़े-बड़ों और युवाओं में इसके प्रति न केवल लगाव था, बल्कि होली आने से पहले खेतों पर काम करते, हल चलाते और बुवाई-कटाई करते समय फाग गाने की प्रैक्टिस करते थे, मगर अब इसका शौक कम ही है । अन्य लोकगीतों की तरह फाग गायन विधा भी विलुप्तता की ओर बढ़ने लगी ।
देश की राजनीति मे खास मुकाम कायम कर चुके मुलायम सिंह यादव अपनी युवा अवस्था से ही फाग गायन के शौकीन रहे । उनके गांव सैफई में फाग की जो टोलियां उठती थीं, उनमें वह शरीक होते थे इसलिए राजनीति में ऊंचाई हासिल करने के बावजूद उन्होंने फाग गायन से मुंह नहीं मोड़ा बल्कि इस गायकी को प्रमुखता देने का बीड़ा उठाया।
अपने हमसंगी सैफई गांव के प्रधान दर्शन सिंह यादव के साथ मुलायम सिंह यादव फाग गाते थे । फाग को भुला न दिया जाये इसके लिए हर वर्ष सैफई महोत्सव में उनके निर्देश पर दो दिन तक फाग गायन का मुकाबला होता है लेकिन पिछले सालो से परिवारिक विवाद के कारण सैफई महोत्सव का आयोजन नही हो सका है परिणामस्वरूप फाग गायक मायूस बने हुए है ।
मुलायम के भाई रामगोपाल भी ऐसे ही राजनेताओ मे से एक ही है जो पिछले 40 45 सालो से अपने गांव सैफई मे होली का लुफत उठाने के अलावा फाग गाने मे अपने आप को सबसे आगे रखते है । रामगोपाल होली पर्व को बेहद ही महत्वपूर्ण मानते है ।
उनका कहना है कि इस देश मे और खासकर उत्तर भारत मे होली सबसे महत्वपूर्ण पर्व है क्यो कि यह ऐसा अवसर होता है जब फसल किसान के घर आती है । उसकी सारी उम्मीदे उस पर होती है और इसमे इतना उल्लास होता है और इसके पीछे एक थ्योरी होती है कि होली के अवसर पर व्यक्ति पिछली सारी लडाईयो को ,एक दूसरे झगडो को भूल कर गले मिलते है और सारे सिकवो को दूर कर देते है फॉर गिवेन फॉर गेट .......मॉफ करो और भूल जाओ । इस सिद्धांत के आधार पर ही लोग काम करते है तो इस दृष्टि से यह बहुत ही प्रेरणादाई त्यौहार तो है ही और पूरे लोगो के बीच मे समन्वय बनाने और समरस्ता बनाने का भी एक त्यौहार है ।
सं प्रदीप
वार्ता