Friday, Mar 29 2024 | Time 17:02 Hrs(IST)
image
लोकरुचि


अक्षय तृतीया से सप्त देवालयों में बनना शुरू होगा फूल बंगला

मथुरा, 23 अप्रैल (वार्ता) अक्षय तृतीया या अखतीज के नाम से मशहूर वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को ब्रज के अधिकांश मंदिरों में न केवल चंदन यात्रा होती है बल्कि वृन्दावन के प्राचीन सप्त देवालयों में इसी दिन से फूल बंगला बनना शुरू हो जाता है। इस बार ब्रज के मंदिरों में बल्देव के दाऊजी मंदिर को छोड़कर सभी मंदिरों में अक्षय तृतीया 29 अप्रैल को मनाई जायेगी। दाऊ जी मंदिर में यह पर्व 28 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन से ब्रज के मंदिरों में ठाकुर को सत्तू का भोग, खरबूजे का पना, ककड़ी, अमरस आदि का भोग लगना शुरू हो जाता है तथा इसी दिन से ठाकुर की पंखा सेवा शुरू हो जाती है। चूंकि अधिकांश मंदिरों में इस दिन ठाकुर के सर्वांग में चन्दन का लेप होता है इसलिए ब्रज के अधिकांश मंदिरों में अक्षय तृतीया के दो तीन सप्ताह पहले से ही चन्दन का लेप तैयार होना शुरू हो जाता है। मथुरा के प्राचीन केशवदेव मंदिर मल्लपुरा में चंदन सेवा के साथ ही वर्ष में केवल एक बार अक्षय तृतीया पर ठाकुर के 24 अवतारों को दर्शन होते है तो वृन्दावन के बांकेबिहारी मंदिर में इस दिन ठाकुर के चरण दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं। प्राचीन केशव देव मंदिर मल्लपुरा मथुरा के सेवायत आचार्य बिहारीलाल गोस्वामी ने बताया कि इस दिन प्रातः साढ़े 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक तथा शाम चार बजे से रात साढ़े नौ बजे तक ठाकुर के सर्वांग दर्शन चंदन लेपन के साथ होते है।


                               मथुरा के मशहूर द्वारिकाधीश मंदिर में तो इस दिन से एक प्रकार से ठाकुर की गर्मी की सेवा शुरू हो जाती है। मंदिर के मुखिया सुदेर के अनुसार इस दिन से मंदिर में फुहार, पंखे, यमुना, नौका लीला, कुज्जा यानी ठाकुर को सुराही में पानी देना शुरू हो जाता है। इस दिन ठाकुर के सर्वांग पर चंदन लेप किया जाता है और इसी दिन से रायबेल के फूलबंगला भक्त की श्रद्धा के अनुरूप शुरू होते हैं। बांकेबिहारी मंदिर की राजभोग सेवा में इस दिन ठाकुर जी के चरण दर्शन होते हैं वहीं शयन भोग सेवा में सर्वांग दर्शन होते हैं। सवा सौ गोस्वामी परिवारों में से प्रत्येक परिवार से एक किलो चन्दन का गोला ठाकुर जी को समर्पित किया जाता है। बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी के अनुसार बांके बिहारी महाराज को रजत पायल धारण कराकर उनके श्री चरणों में सृष्टि का प्रतीक चन्दन का गोला रखा जाता है। उन्होंने बताया कि बांकेबिहारी मंदिर तथा व्रज के कई मंदिरों में चरण दर्शन वर्ष में केवल एक बार ही होते हैं। सप्त देवालयों में राधारमण मंदिर में राजभोग आरती बत्ती की न होकर फूलों की होती है। शरद उत्सव तक यही क्रम चलता रहता है। मंदिर के सेवायत आचार्य दिनेशचन्द्र गोस्वामी ने बताया कि इस दिन चूंकि बहुत अधिक चंदन की आवश्यकता होती है इसलिए एक पखवारा पहले ही चन्दन की घिसायी शुरू हो जाती है।


                              गोस्वामी जी ने बताया कि बालस्वरूप में सेवा होने के कारण ठाकुर को गर्मी से बचाने के लिए अक्षय तृतीया के दिन चन्दन में कपूर, केसर मिलाकर और फिर ठाकुर का श्रंगार चंदन के पैजामा, अंगरखी, पगड़ी, पटका बनाकर अद्भुत रूप से किया जाता है। लाला को नजर लगने से बचाने के लिए इस दिन झांकी दर्शन होते हैं। अक्षय तृतीया से शरदपूर्णिमा तक ठाकुर जी जगमोहन में विराजते हैं और पद गायन होता हैः- “ श्री राधारमणलाल अखतीज। पहरे चन्दन बाधौ, अंग में प्रिय प्रेम रात भीज। श्रीराधारमणलाल अखतीज।।” इस दिन सतुआ के लड्डू और फलों का भोग लगता है। उधर मदनमोहन मंदिर के सेवायत अजय किशोर गोस्वामी ने बताया कि रासलीला के दौरान ठाकुर को तपिश लगने पर राधारानी ने उनसे शरीर में चन्दन लेपने को कहा था। इस दिन ठाकुर के शरीर पर चंदन लेपकर सत्तू एवं शीतल फलों का भोग लगता है। राधा दामोदर मंदिर के सेवायत आचार्य कनिका गोस्वामी ने बताया कि इस मंदिर में चन्दन सेवा करने मात्र से जन्म जन्म के पाप स्वतः नष्ट हो जाते हैं। इस मंदिर में विदेशी भक्त भी अक्षय तृतीया के लिए चंदन घिसकर पुण्य कमाते हैं। ठाकुर जी के शरीर में चंदन लेपन के बाद रायबेल के सुगंधित पुष्पों से श्रंगार कर सत्तू, ऋतुफल, ककड़ी, खरबूजा, शर्बत, किशमिश, मुनक्के आदि से ठाकुर जी का भोग लगाते हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर में ठाकुर राधादामोदर महाराज को चंदन लेपन की शुरूवात श्रील जीव गोस्वामी प्रभुपाद ने शुरू की थी। मंदिर के चारों ठाकुरो कृष्ण कविराज गोस्वामी के ठाकुर राधा वृन्दावन चन्द्र,जीव गोस्वामी के ठाकुर राधा दामोदर महराज, कविवर जयदेव के ठाकुर राधा माधव एवं भूगर्भ गोस्वामी के ठाकुर श्री राधा छैल चिकन को चंदन लेपन किया जाता है।


                              धा बल्लभ मंदिर में चंदन का विशेष श्रृंगार, शीतल भोग , अंकुरित दाल के भोग के साथ ग्रीष्म ऋतु का श्रृंगार होता है । मंदिर के सेवायत गोविन्द गोस्वामी के अनुसार इसदिन से ही फूल बंगला बनना शुरू हो जाता है। गोविन्द देव मंदिर के सेवायत आचार्य सुमित गोस्वामी ने बताया कि प्राचीन मंदिर में जहां गिर्राज जी का चन्दन का श्रृंगार किया जाता है और शीतल पदार्थों का भोग लगता है वहीं नवीन मंदिर में राधा गोविन्द देव का चन्दन से श्रृंगार होता है। वृन्दावन के सप्त देवालयों में गोपीनाथ मंदिर में चन्दन का अभिषेक कर ठाकुर को अधोवस्त्र धारण कराए जाते हैं। इस दिन से रथयात्रा तक शालिग्राम भगवान को मध्यान्ह में जलधारा में विराजमान करते हैं। राधा श्यामसुन्दर मंदिर का फूल बंगला महोत्सव बड़े पैमाने पर शुरू होता है। वृन्दावन के सप्त देवालयों में मशहूर गोपीनाथ मंदिर के सेवायत राजा गोस्वामी ने बताया कि इस दिन से ही मंदिर में चमर की आरती शुरू हो जाती है तथा रथयात्रा तक सालिगराम जी जलधारा में विराजमान करते हैं। दानघाटी मंदिर के सेवायत मथुरा प्रसाद कौशिक के अनुसार इस दिन मंदिर में ठाकुर का चन्दन लेपन श्रृंगार होता है। लाखों भक्त गिरि गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। बल्देव के दाऊजी मंदिर में ठाकुर को पंखा झलना शुरू हो जाता है। वृन्दावन, मथुरा, गोवर्धन एवं दकेवल बिहारी जी मंदिर में भक्तों का हजूम जुड़ता है बल्कि सप्त देवालयों में ठाकुर का चंदन श्रंगार दर्शन करने की होड़ सी लग जाती है।

There is no row at position 0.
image