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भोपाल गैसकांड की बरसी पर पीड़ितों के न्याय की बात दोहरायी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने

भोपाल, 02 दिसंबर (वार्ता) विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदियों में शामिल भोपाल गैसकांड के लगभग साढ़े तीन दशक बाद अब भी हजारों पीड़ित न्याय के लिए भटक रहे हैं। इन पीड़ितों के हक की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों ने एक बार फिर गैसकांड की बरसी के मौके पर न्याय की लड़ाई लड़ने की प्रतिबद्धता जताते हुए इस हादसे में मारे गए हजारों लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने आज कहा कि गैसकांड से प्रभावित हजारों लोगों का उचित पुनर्वास आज भी नहीं हो पाया है और न ही उन्हें पर्याप्त मुआवजा मिल सका। वे भोपाल गैसकांड के बाद से पीड़ितों की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं और अंतिम सांस तक उनका संघर्ष जारी रहेगा।
वर्ष 1984 में दो और तीन दिसंबर की दरम्यानी रात्रि में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कीटनाशक बनाने वाले यूनियन कार्बाइड कारखाना परिसर के एक टैंक से जहरीली गैस मिथाइल आइसो सायनेट (मिक) के रिसाव की वजह से हजारों लोगों की मौत हो गयी थी और लाखों लोग इससे प्रभावित हुए थे। इसके हजारों पीड़ित आज भी उस दिन की काली रात काे याद कर सहम जाते हैं।
श्री जब्बार ने बताया कि अमरीकी कंपनी की अगुवाई वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड कारखाने के प्रबंधन की लापरवाही और सुरक्षा के उपायों के प्रति गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये के कारण मिक गैस के एक टैंक में पानी और दूसरी अशुद्धियां प्रवेश कर गयीं, जिससे प्रतिक्रिया हुई और मिक तथा दूसरी गैसें वातावरण में रिस गईं। ये जहरीली गैसें हवा से भारी थीं और भोपाल शहर के लगभग 40 किलोमीटर इलाके में फैलीं। उस समय के 56 वार्डों में से 36 वार्डों में इसका गंभीर असर हुआ। इसके असर से (कई सालों में) 20,000 से ज़्यादा लोग मारे गए और लगभग पांच लाख लोगों पर अलग-अलग तरह का प्रभाव पड़ा।
श्री जब्बार ने बताया कि उस समय भोपाल की आबादी लगभग 9 लाख थी। यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास के इलाके में पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों पर हुआ असर भी, उतना ही गम्भीर था। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड उस समय यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के नियंत्रण में था, जो अमरीका की एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी है। बाद में यह डाव केमिकल कम्पनी (यू.एस.ए.) के अधीन आ गयी।
उनका कहना है कि हादसे के तीन दशक बाद भी ना तो राज्य सरकार ने और ना ही केन्द्र सरकार ने इसके नतीजों और प्रभावों का कोई समग्र आकलन करने की कोशिश की है, ना ही उसके लिए कोई उपचारात्मक कदम उठाए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता श्री जब्बार का कहना है कि 14-15 फरवरी 1989 को केन्द्र सरकार और कम्पनी के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था और उसके तहत मिली रकम का हरेक गैस प्रभावित को पांचवे हिस्से से भी कम मिल पाया है। नतीजतन, गैस प्रभावितों को स्वास्थ्य सुविधाओं, राहत और पुनर्वास, मुआवज़ा, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और न्याय, सभी के लिए लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी है। साल 2018 में भी गैस प्रभावितों के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहुत कम प्रगति होना गम्भीर चिन्ता का विषय रहा है।
गैस पीड़ितों के लिए कार्य करने वाले अन्य संगठनों ने भी पीड़ितों के लिए न्याय लड़ने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए आरोप लगाया कि केंद्र और राज्य सरकारों की लचर नीति के कारण अभी तक पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा नहीं मिल पाया और न ही उनका उचित पुनर्वास हाे सका। ऐसे पीड़ितों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं।
इस बीच आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग, पीड़ित व्यक्तियों की चिकित्सा, आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरण संबंधी राहत एवं पुनर्वास की योजनाएं बनाकर उनका क्रियान्वयन कर रहा है। विभिन्न संगठनों के साथ समन्वय बनाकर पीड़ितों की समस्याओं का निदान भी किया जा रहा है।
सूत्रों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशों और निर्धारित मापदंडों के अधीन पांच लाख 74 हजार से अधिक गैस पीड़ित और उनके परिवारों को तीन हजार करोड़ रूपयों से अधिक की राशि का मुआवजा वितरित किया जा चुका है। इसके अलावा कल्याण आयुक्त कार्यालय की ओर से गैस पीड़ितों को अत्यंत गंभीर, स्थायी विकलांगता, अस्थायी विकलांगता और कैंसर एवं किडनी रोग से पीड़ित गैस पीड़ितों को अनुग्रह राशि के रूप में आठ सौ करोड़ रूपयों से अधिक की राशि प्रदान की जा चुकी है। गैस पीड़ितों के लिए छह अस्पताल और नौ डे केयर यूनिट कार्य कर रहे हैं।
प्रशांत
वार्ता
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