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यौन संबंधित अपराध में पुरूषों की पहचान नहीं होनी चाहिए उजागर

जबलपुर, 06 फरवरी (वार्ता) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने यौन संबंधित अपराध में पुरूषों की पहचान उजागर नहीं किये जाने की मांग को लेकर दायर याचिका की सुनवायी में आज आदेश दिया है कि यौन संबंधित अपराध में पुरूषों की पहचान उचागर नहीं हो चाहिये।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस के सेठ और न्यायाधीश व्ही के शुक्ला की युगलपीठ ने याचिका को अंतिम सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता डॉ पी जी नाजपांडे तथा डॉ मुमताज अहमद खान की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि आईपीसी की धारा 228 ए के तहत यौन अपराध संबंधित मामलें में पीड़िता की पहचान उजागर नहीं की जा सकती है। इसके विपरित आरोपी पुरूष की पहचान उजागर कर दी जाती है। यौन संबंधित अपराध में न्यायालय द्वारा निर्दोष करार दिये जाने के बावजूद भी उसे समाज में कलंकित होने का सामना करना पड़ता है।
संविधान की आर्टिकल 15 में इस बात का उल्लेख है कि लिंग,जाति,लिंग,धर्म व जन्म स्थान के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा। याचिका में कहा गया था कि मी-टू कम्पैनिंग में भी पुरूषों पर खुलेआम आरोप लगाये जाते है। नाम सार्वजनिक होने के कारण उन्हें बदनामी का सामना करना पड़ता है। याचिका में मांग की गयी है कि यौन उपराध में जब तक न्यायालय किसी व्यक्ति को दोषी करार नहीं देता है उसकी पहचान सार्वजनिक नहीं की जाये।
सं बघेल
वार्ता
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