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वन संरक्षण अधिनियम के तहत परियोजनाओं को जल्द मिले स्वीकृति: कमलनाथ

भोपाल, 15 जून (वार्ता) मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आज नई दिल्ली में नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की पाँचवी बैठक में सुझाव दिया कि वर्तमान में सार्वजनिक उपयोग की विकास परियोजनाओं की स्वीकृति के लिए वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत राज्य सरकार को अधिकार दिया जा सकता है।
आधिकारिक सूत्रों द्वारा यहां दी गयी जानकारी में श्री कमलनाथ ने कहा कि केंद्र सरकार विभिन्न उपकर और अधिकार से जो राशि राज्यों से टैक्स के रूप में एकत्रित करती है, उसमें राज्यों की बराबरी की हिस्सेदारी हो। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश ने वनों के संरक्षण के लिए अथक प्रयास किए हैं। इसके परिणामस्वरूप राज्य में लगभग 95000 वर्ग किलोमीटर जंगल हैं, जो देश में सबसे ज्यादा हैं।
उन्होंने कहा कि वन क्षेत्रों की विशालता को देखते हुए विकास गतिविधियों को अंजाम देना चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए कई अनुमतियों और मंजूरी की आवश्यकता होती है। इससे या तो विकास प्रक्रियाओं में देरी होती है या वे रुक जाती है। हर साल लगभग 125 आवेदन वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत मंजूरी के लिए ऑनलाइन आते हैं। इसमें सिंचाई, सड़क, खनन, ट्रांसमिशन लाइन, पेयजल आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों की परियोजनाएँ शामिल हैं। इनके लिए आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने की लंबी प्रक्रिया के कारण इन विकास गतिविधियों में देरी हो जाती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी के लिए पानी की आवश्यकता के मद्देनजर प्रमुख सहायक नदियों के लिए अलग से नदी कार्य योजना बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि खनिज संपन्न राज्यों को अपना जायज हिस्सा मिलना चाहिए। ऐसे राज्यों के लिए खनिज दोहन की जांच करने और उन्हें लाभ और कर राजस्व में उचित हिस्सा देने के लिए एक व्यापक नीति की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि खनन प्रभावित लोगों के रोजगार सृजन और खनन प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए भी एक अलग नीति की आवश्यकता है। खनिज संसाधनों को लगातार बनाए रखने के लिए, खनिज से समृद्ध राज्यों को संबंधित परियोजनाओं के लिए जरूरी लाइसेंस के लिए तत्काल मंजूरी मिलनी चाहिए। राज्यों को करों में हिस्सेदारी के बारे में श्री कमलनाथ ने कहा कि संवैधानिक भावना का निर्वहन करने में सहायता करने के लिए राज्यों को वित्तीय लचीलापन प्रदान करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि राज्यों को होने वाले लाभ में काफी कटौती की गई, क्योंकि केंद्र सरकार ने विभिन्न केंद्र प्रायोजित योजनाओं में फंडिंग में राज्यों के हिस्से को भी कम कर दिया है। उन्होंने कहा कि सेस और सरचार्ज जैसे उपायों के माध्यम से अतिरिक्त संसाधनों को जुटाने के लिए हाल के वर्षों में केंद्र सरकार की प्रवृत्ति ठीक नही हैं।
बघेल
वार्ता
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