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आदिवासी वृद्ध दंपत्ति पर बैंक का बकाया कर्ज चुकाया न्यायाधीश ने

कांकेर, 14 जुलाई(वार्ता) छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी वृद्ध दंपत्ति ने अपनी गरीबी की व्यथा लोक अदालत में सुनायी तो न्यायाधीश ने द्रवित होकर इस दंपत्ति को न्याय दिलाने के साथ, बैंक का कर्ज चुकाने के लिए रकम दी और साथ ही घर से आने जाने का किराया भी।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र ग्राम कोलरिया निवासी धन्नू राम दुग्गा (80) अपनी पत्नी नथलदेई दुग्गा (70) के साथ बैंक के नोटिस पर कांकेर जिला न्यायालय में कल आयोजित नेशनल लोक अदालत में पहुंचे। उन्होंने गांव में अपने छोटे से मकान के निर्माण के लिए बैंक से बीस हजार रुपये का कर्ज लिया था, जिसमें छह हजार रुपये की राशि बकाया थी। छह हजार रुपये का भुगतान नहीं करने पर इलाहाबाद बैंक ने उन्हें नोटिस भेजा था और मामला नेशनल लोक अदालत में रखा गया था।
शनिवार को यह दंपत्ति कोर्ट में जिला एवं सत्र न्यायाधीश हेमंत सराफ की खंडपीठ के समक्ष उपस्थित हुए। उन्होंने न्यायाधीश को बताया कि अधिक आयु होने के कारण अब वे कोई कार्य नहीं कर सकते, उनके पास आय का कोई जरिया नहीं है और न ही उनकी कोई संतान है, जो बैंक की उधारी का भुगतान कर सके। नथलदेई ने बताया कि उसे वृद्धावस्था पेंशन मिलती है और सरकारी राशन दुकान से 35 किलो चावल मिलता है। इससे उनका गुजारा चलता है।
पति धन्नूराम को वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिलती। न्यायाधीश श्री सराफ वृद्ध दंपत्ति की व्यथा सुन द्रवित हो गए। उन्होंने बैंक के अधिकारी को आपसी समझौते से यह मामला समाप्त करने के लिए बुलाया। जिस पर बैंक अधिकारी नागेश्वर नाग ने बताया कि बैंक के नियमानुसार कम से कम आधी राशि जमा किए जाने पर ही मामले को राइट ऑफ किया जा सकता है। लेकिन दंपत्ति के पास बैंक को देने के लिए तीन हजार रुपये भी नहीं थे।
ऐसी स्थिति में न्यायाधीश श्री सराफ ने स्वयं ही तीन हजार रुपये बैंक को देकर आपसी समझौते के आधार पर मामले को समाप्त करने का निर्देश दिया। इसके बाद वृद्ध दंपत्ति के पास घर वापस जाने के लिए पैसे नहीं होने पर न्यायाधीश ने उनके घर वापस जाने के लिए भी उन्हें एक हजार रुपये दिए।
करीम.व्यास
वार्ता
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