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पत्रकारों के मानवाधिकार पर भी होनी चाहिए चर्चा – न्यायमूर्ति प्रसाद

रायपुर 26 जुलाई(वार्ता)भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सी.के.प्रसाद ने पत्रकारों के मानवाधिकार पर भी चर्चा किए जाने पर जोर देते हुए आज कहा कि सबसे निचले पायदान पर पहुंच चुकी पत्रकारिता की विश्वसनीयता की मौजूदा स्थिति से उबरने के लिए गहन विचार की जरूरत है।
श्री प्रसाद ने आज यहां हिन्दी समाचार पत्र सम्मेलन एवं रायपुर प्रेस क्लब द्वारा आयोजित पत्रकारों के दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कहा कि पत्रकारिता के क्षेत्र में आ रही गिरावट के कुछ कारण अज्ञानता से भी जुड़े है।उन्होने कहा कि पत्रकारों के एक बड़े वर्ग को पत्रकारिता के मानको का ज्ञान उस तरह के नही है,जितना होना चाहिए।उसे विकसित करने में प्रशिक्षण कार्यशालाएं बेहतर योगदान कर सकती है।उन्होने एक उदाहरण देते हुए कहा कि कागजी डिग्री से ऊपर तो जा सकते है लेकिन जिनके पास डिग्री नही है उन्हे बेहतर तराशा जा सकता है।
उन्होने कई समाचार पत्रों की पृष्ठ संख्या आठ से 80 पेज तक पहुंचने का जिक्र करते हुए कहा कि यह पत्रकारिता कहां ले जा रही है और इससे आम पाठकों का ज्ञान कितना बढ़ रहा है,यह भी विचारणीय है।श्री प्रसाद ने समाचार पत्रों में ग्रामीण अंचलों की समस्याओं ,किसानों एवं मजदूरों को जगह नही मिलने पर भी चिन्ता जताई।उन्होने कहा कि किस तरह के विज्ञापनों के जगह दी जा रही हैं और उससे क्या संदेश देने की कोशिश हो रही है,इस पर भी सोचना होगा।
पत्रकारों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति पर भी विचार किए जाने पर जोर देते हुए कहा कि आज समाज में कैदी,अपराधी तक के मानवाधिकारों की चर्चा होती है पर पत्रकारों के मानवाधिकार पर कोई चर्चा नही करता।उनकी क्या स्थिति हैं इस पर कार्यशालाएं भी नही होती है,और पता नही क्यों सभी चुप रहते है।निडर एवं निष्पक्ष पत्रकारिता बगैर आर्थिक सामाजिक स्थिति के बेहतर हुए पत्रकारों से चांद मांगने की कोशिश करना कहां तक जायज है।
साहू
जारी.वार्ता
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