Saturday, Apr 20 2024 | Time 17:52 Hrs(IST)
image
राज्य » मध्य प्रदेश / छत्तीसगढ़


गांधी जी स्वयं के सबसे बड़े आलोचक थे : गोविंद मिश्र

रायसेन, 26 सितंबर (वार्ता) गांधीवादी विचारक एवं साहित्यकार गोविंद मिश्र ने कहा है कि गांधी जी स्वयं के सबसे बड़े आलोचक थे और वे कभी भी अपने को बड़ा विचारक नहीं मानते थे। उनके इस गुण के कारण उनके विरोधियों के लिए भी गांधी जी अपरिहार्य थे। यही वजह है कि पूरा विश्व उन्हें आज भी प्रासंगिक मान रहा है।
श्री मिश्र ने आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ के मौके पर सांची बौद्ध- भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के बारला अकादमिक परिसर में आयोजित व्याख्यान में गांधी जी के व्यक्तित्व के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। “भारत के चिरंतन मूल्य और महात्मा गांधी” विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि 23 सितंबर को न्यूयॉर्क में चल रही संयुक्त राष्ट्र “क्लाइमेट एक्शन समिट” और अमेरिकी कॉन्ग्रेस में जब 16 साल की स्वीडन मूल की लड़की ग्रेटा थनबर्ग ने जलवायु परिवर्तन पर ललकारा औऱ दुनिया के लोगों से पूछा कि उन्हें क्या अधिकार है कि वे पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर उसकी उम्र के बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं, तब उन्हें गांधी जी याद आए।
विश्वविद्यालय की विज्ञप्ति के अनुसार श्री मिश्र ने बताया कि 1905 में लिखी अपनी पुस्तक “हिंद स्वराज” में गांधी जी ने प्रकृति, ग्राम, शहरीकरण का विरोध, पश्चिमीकरण का विरोध इत्यादि पर ज़ोर दिया था। जिसकी अहमियत आज हमें समझ आ रही है, जब हमारे शहर रहने लायक नहीं बचे हैं, अत्यधिक गर्मी-बाढ़ हमें नुकसान पहुंचा रही है और पूरे विश्व में प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो गया है।
श्री मिश्र ने कहा कि गांधी जी सदैव अपरिगृह पर ज़ोर देते थे यानी चीज़ों को इकट्ठा न करना। लेकिन आज ऐसा है कि कुछ परिवारों में प्रत्येक सदस्य के पास ए़ सी़ कारें हैं, जबकि पूरे परिवार का एक कार से काम चल सकता था। इस तरह से पेट्रोल जलाकर, ए़ सी़ चलाकर प्रकृति को भी नुकसान पहुंचाया गया और अब हम कारों की बिक्री घटने पर भी चिंतित हो रहे हैं।
छात्रों को संबोधित करते हुए श्री मिश्र ने कहा कि अगर आप पूरी ईमानदारी से अपना स्वयं का साक्षात्कार करते रहेंगे जिस तरह गांधी जी करते थे़ तो आप सफल होंगे। उन्होंने कहा कि गांधी जी अपने प्रति पूरी तरह ईमानदार थे।

श्री मिश्र ने कहा कि गांधी जी अपनी आत्मकथा में पूरी ईमानदारी से ये स्वीकारते हैं कि पिछले तीस साल के अपने जीवन में(1918 से 1948 तक) वे स्वानुभूति के लिए प्रयास करते रहे, ईश्वर से साक्षात्कार के लिए आतुर रहे और मोक्ष क्या है तलाश करते रहे।
उन्होंने कहा कि गांधी जी के जीवन का अध्ययन यह बताता है कि वे अपने पूरे जीवन में विकसित होता व्यक्तित्व थे, वे सीखते रहे, अपना निर्माण करते रहे.....वे कभी भी मूल नहीं रहे यानी परिस्थितियों से सीखते थे, सत्य को स्वीकारते थे और उसे अपने व्यक्तित्व में, अपने जीवन में ढाल लेते थे। उन्होंने भारत के चिरंतन मूल्‍यों को अपना लिया था।
श्री मिश्र ने कहा कि गांधी जी ने हिंदुत्व के सही मूल को सदैव प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने आम लोगों के बीच जाकर उस दौर के आम विशुद्ध व्यक्ति से समझा कि वो धर्म को कैसे अपने जीवन में जीता है। उन्हाेंने कहा कि गांधी जी रामचरित मानस और गीता के सार को अपने जीवन में प्रस्तुत करते थे कि- “ऐसा कोई भी कार्य न करें जिससे दूसरों को कष्ट हो” और “परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं है”। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटने के बाद जब गांधी जी ने ट्रेन के ज़रिए पूरे भारत की यात्रा की तो सही मायनों में उन्होंने “भारत की खोज” की।
सांची विश्वविद्यालय में आयोजित किए गए इस विशेष व्याख्यान में अंग्रेज़ी विभाग के प्रो. ओ.पी बुधोलिया ने महत्मा गांधी के सहिष्णुता के सिद्धांत का ज़िक्र किया।
अपने विशिष्ट व्याख्यान और परिचर्चा के बाद श्री मिश्र ने छात्र-छात्राओं से भेंट की और अपना कहानी संग्रह “प्रतिनिधि कहानियां” उन्हें भेंट की।
व्यास
वार्ता
image