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गांधीजी ने देश की आजादी के आंदोलन का प्रारंभ समाजसेवा से शुरू किया था-गोठी

बैतूल, 29 सितंबर (वार्ता)मध्यप्रदेश के बैतूल निवासी 102 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री बिरदी चंद गोठी ने बताया है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश की अजादी के आंदोलन का प्रारंभ समाजसेवा से किया था।
श्री गोठी ने कल उनके घर मिलने गये श्री विनायकम विद्यालय के छात्रों को बताया कि गांधीजी ने देश की आजादी के आंदोलन का प्रारंभ कैसे किया, किस तरह से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जेल भेजा गया और भारत को स्वतंत्रता कैसे मिली। उन्होंने छात्रों से बैतूल के इतिहास एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर विस्तृत चर्चा भी की।
श्री विनायकम स्कूल से आज जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार श्री गोठी ने विद्यार्थियों को बताया कि महात्मा गांधी जब 1915-16 में भारत आये तो उनकी मंशा थी कि देश आज़ाद होना चाहिए। ये कार्य गांधीजी ने समाजसेवा के द्वारा प्रारंभ किया। श्री गोठी ने बताया कि वह 13 वर्ष की उम्र में आजादी के आंदोलन से जुड़ गए थे। वर्ष 1930 में गांधीजी बैतूल आये थे।
श्री गोठी से जब श्री विनायकम स्कूल के विद्यार्थियों ने पूछा कि स्वतंत्रता के आंदोलन में भाग लेने की प्रेरणा उन्हें किससे मिली, तो बड़े ही सहज ढंग से उन्होंने बताया कि उनके परिवार से ही उन्हें आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने की प्रेरणा मिली। उनके काका स्व. दीपचंद गोठी 1920 से कांग्रेस में रहे। चूँकि कांग्रेस कार्यालय उनके घर पर ही था इसलिए आंदोलन से सम्बंधित सभाएं घर पर ही होती थी, जिसकी सारी व्यवस्थाएं उनके परिवार के लोग करते थे।
श्री गाेठी ने बताया कि परिवार से तीन लोगों (स्वर्गीय काका दीपचंद गोठी, स्वयं वे खुद और छोटा भाई गोकुलचंद गोठी) ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और जेल भी गये। इसके अलावा तीन लोग (मेखलाल , जेठमल और टेकचंद) तातेड़ परिवार से गये।
श्री गोठी ने बताया कि बैतूल जिले से करीब 450 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भाग लिया था जिसके साक्ष्य के रूप में यहां शहीद भवन में एक शिलालेख भी लगा हुआ है। हर गांव, हर शहर से लोग हम लोगों के साथ थे, जिसमें अकोला, अमरावती, होशंगाबाद, रायपुर और बिलासपुर के लोग भी 1942 के आंदोलन में हमारे साथ जेल गये थे। नागपुर जेल में करीब 250-300 लोगों का साथ रहा। गांधीजी ने हमसे परस्पर प्रेम, सौहार्द, संबंधों में प्रगाढ़ता एवं कर्तव्य पालन की बात कही है और इसी कारण भारत के नागरिक उनसे इतना प्रेम करते हैं।
उन्होंने बताया कि गांधीजी के नेतृत्व में 1920, 1930, 1932, 1940 एवं 1942 में किये गए स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों के द्वारा आज़ादी की इबारत लिखी गई। चाहे फ्रांस हो, रूस हो, जर्मनी हो या फिर कोई भी देश जो ग़ुलाम रहा हो वहां आज़ादी के लिए खून बहाया लेकिन हमारे देश में क्रांतिकारियों के बलिदान के साथ साथ हमने सत्य और अहिंसा के पथ पर चलते हुए आज़ादी पाई और संसार के समक्ष एक अनुपम उदाहरण पेश किया है।

सं.व्यास
वार्ता
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