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देवता की पूजा के लिए बनाये गए स्थल तब्दील हो रहे हैं स्कूलों में

बीजापुर, 10 नवंबर (वार्ता) छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान बाघ परियोजना इलाके में स्थित पांच गांव ऐसे हैं जहां ग्रामीणों की पहल से, देवता की पूजा के लिए बनायी गई देवगुड़ी (झोंपड़ीनुमा) को ज्ञानगुड़ी(स्कूल) में तब्दील किया गया है। बच्चों को पढ़ाने के लिए ग्रामवासी कहीं निजी मकानो में तो कहीं पेड़ों के नीचे अपनी निगरानी में स्कूल खुलवा रहे हैं।

महज 5 या 7 बच्चों से शुरू हुई ज्ञानगुड़ी स्कूल घासफूस की छत और कच्ची मिटटी से घिरी दीवार वाली है। सामने खुले दालान मे बैठे बच्चे अपने गुरू की सीख बड़े ध्यान से सुनते हैं।

जिले के धुर माओवाद प्रभावित इलाके के करकावाडा और गोंडनुगुर गांव के बाशिंदों ने शिक्षा की ज्योत जलाने गजब की पहल की है। यहां चौदह साल बाद स्कूल की घंटी बजी है, वह भी देवगुड़ियों में। भोपालपट्नम ब्लाक में बसे सेंडरा इलाके के ग्रामीणों ने बच्चों के लिए शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करने न सिर्फ स्कूल फिर से खुलवाने में शिक्षा विभाग की मदद की है बल्कि स्कूल लगाने के लिए छत नसीब न होने की स्थिति में गांव की देवगुड़ियों में ही शिक्षा का मंदिर स्थापित कर दिया है। ग्रामीणों के इस पहल की चर्चा अब पूरे क्षेत्र में हो रही है।

दरअसल माओवादी उत्पात के चलते केरपे संकुल के पांच गांवों में पिछले 14 वर्षों से स्कूल बंद पड़े थे। लंबे इंतजार के बाद ग्राम फरसनार, करकावाडा, गोंडनुगुर, दुधेपल्ली और केरपे में स्कूल की घंटी फिर से बजने लगी है। करकावाडा और गोंडनुगुर गांव में स्कूल देवगुड़ी में खोले गए हैं।बस्तर संभाग में शायद यह पहला मामला है, जब स्कूल के लिए भवन नहीं मिलने पर गांव की देवगुड़ियों में बच्चों के लिए पढ़ने-लिखने की व्यवस्था की गई है।

सेंडरा जैसे दुर्गम इलाके में जहां नक्सलियों की तूती बोलती है, वहां के पांच गांवों में 14 साल बाद दोबारा स्कूल शुरू करवाना किसी चुनौती से कम नहीं था। बावजूद खंड शिक्षा अधिकारी सुखराम चिंतूर के प्रयास से स्कूल की घंटी फिर से बज रही है। करकावाडा और गोंडनुगुर में स्कूल के लिए भवन उपलब्ध नहीं थे। इसके मद्देनजर ग्रामीणों ने वैकल्पिक व्यवस्था के लिए गांव की देवगुड़ियों में स्कूल खोलने की अनुमति दी।

खंड शिक्षा अधिकारी के मुताबिक देवगुड़ी में स्कूल खोलने का यह पहला मामला है और इससे यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण शिक्षा को लेकर बेहद जागरूक हैं। करकावाडा और गोंडनुगुर के अलावा केरपे में पुराने पटवारी आवास में स्कूल खोला गया है, जबकि दुधेपल्ली और फरसानार में ग्रामीणों के सहयोग से निजी मकानों में पाठशाला लग रही है। वर्ष 2005 में सलवा जुडूम की शुरूआत के बाद इलाके में स्कूल बंद हो गए थे।

बीजापुर के जिला शिक्षा अधिकारी केके उदेष ने बताया कि 2005 में नक्सली विरोधी अभियान सलवा जुडूम की शुरूआत हुई थी। नक्सली हिंसा के तहत 270 स्कूलों को बंद किया गया था। जिसमें 233 प्राथमिक शाला तथा 37 माध्यमिक शाला बंद पड़ी हैं । इनमें से अब तक 12 स्कूलों को अलग- अलग गांव में प्रारंभ किया गया है। शेष स्कूलों को खोलने के लिए गांववालों के साथ एक अभियान चलाया जा रहा है।

गांव के प्रमुख हिड़मा जोगा ने बताया कि राष्ट्रीय उद्यान में बसे 56 गांवों की आबादी तेरह हजार से अधिक है। जिसमें लगभग ढाई हजार बच्चे अनपढ़ हैं। हम अपने बच्चों को हर हाल में पढ़ाना चाहते हैं। अब तक हमने इलाके में गोली , बारूद की आवाज सुनी है, दहशत में जीवन गुजारते आ रहे हैं। अब सुबह स्कूल की घंटी की आवाज आती है। जिसे हम अब लगातार बनाये रखेगें ।

करीम.व्यास
वार्ता
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